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________________ पष्टीत : ६-७ २७९ लोक वींद री, गैहणा कपड़ा री प्रसंसा करै, पिण कहै, दुपटौ तौ वाह वाह ई है जद फकीर फेर बोल्यौ-दुपटौ तौ हम गरीब रौ है। वले साहकार वरज्यो रे सांई ! बोळ मती । इम हिज तोरण रै महढे लोक दुपटा नै सरावै, जद फकीर कहै-- दुपटौ तौ हम गरीब रौ है । जद साहूकार जांण्यौ वरज्यौ तो ही रहै नहीं। जद दुपटौ न्हांख दीयौ, औ थारी दुपटौ अब जातौ रहै। "रुघनाथजी जैमलजी नै कहिवायौ । ज्यू विहाव तौ साहूकार नां बेटा रौ। अनै घणी प्रसंसा दुपटा री ज्यूं साध साधवी तो थांरा लेसी अनै टोळी भीखणजी रौ बाजसी ए समाचार सुण नै जैमलजी रा परणांम भाग गया। जद जैमलजी बोल्या-भीखणजी हूं तो गळा तांई कळ गयो । पंडतां रै जांणी वरत है । थे चोखौ पाळौ। ६. बड़ो कर्म है नाम को जैमलजी जैपुर आया जद फरसरांम कुकरै चौमासा री वीणती कीधी। जद जैमलजी बोल्या-म्हारो चौमासी हुआं वांदवां ने बाई भाई केई आवै । दुर्बल पिण केई आशा धरनै आवै सो थांसू सझै नहीं। तिण कारण अठे चौमासौ करण रौ अवसर नहीं। जद फरसराम बोल्यो-आ हजार रुपीयां री थैली आपरा पाट हेठे आंण मेली है । फेर चाहीजै तौ पिण अटकाव नहीं। पिण चौमासौ अठै करौ । पछै चौमासौ जैपुर जैमलजी कीधौ । सांमीदासजौ जैपुर चौमासौ कीयो । हिवै पज्जुसण संवच्छरी आयां पोसां री खांचाखांच घणी मंडी। केई तो जैमलजी कांनी ले जावै नै केई सांमीदासजी कांनी ले जावै । इम करता सौ पोसा तो जैमलजी रै थया नै सो पोसाई सांमीदासजी रै थया । एक भायो पोसौ करण आयो आथण रौ । जद खांच नै सामीदासजी कांनी ले गया। प्रभाते गिणीया सौ जैमलजी रे तो पोसा १०० हुआ। अनै सांमीदासजी रै १०१ थया। जद जैमलजी बोल्या धर्म तो छै जिम छै, बड़ो कर्म है नाम को। एक भाया नै खांचतां, सिक्को रहि गयो सांम को। ७. जाण्यौ एक सुसलो वधती मार्यो नगजी जाति रौ गूजर । तिण घर छोड़ नै भेष पहिरयौ । ते दोन गुरु चेला विहार करता थका करे. आवै। मारग मैं एक चोर उठ्यौ । सो गुरां रा तो कपड़ा खोस लीया । नगजी रा लेवा लागौ । जद नगजी बोल्यौ-थां कनै तरवार है म्हारै लोह रौ संघट्टो करणौ नहीं । सौ शस्त्र अलगा मेल दै । जब तिण शस्त्र दूरा मेल्या । कपड़ा लेवा आघौ आयो । जद नगजी चोर रा दोनूं बाहुंडा पकया। पछै कूटवा लागौ जद तिणरी गुरु बोल्यौ-रे ! अनर्थ करै । मनुष मारै है। जद नगजी बोल्यौ-यूं साधां नै खोसे जद विचरसा
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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