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________________ २७८ दृष्टांत ___. तूंतरा-तूंतरा करने बिखेर दां __ भीखणजी स्वामी नीकलीया जद रुघनाथजी जैमलजी ने कहयो-आंपे तो घणा छां अनै औ १३ जणा है। हीमत पकड़ी तो तूंतरा-तूंतरा करने बिखेर दां। जद जैमलजी बोल्या-"साहिपूरा ना राजा ऊपर राणाजी री फौज आई, कजीयो करवा लागा। पिण राणाजी री फोज रो जोर लागौ नहीं, ते कारण एक तो साहिपुरा नौ कोट भारी, दौली पाणी सूं भरी खाई। माहै तोपां रौ जोर घणो अनै राणांजी री फौज माहिला झगड़ो करै ते अमराव पिण साहिपुरा वाळा सूं तोरण मते नहीं। सो छ महीना तांई खपीया लाखां रुपीया उपऱ्या पिण साहिपुरौ हाथ आयो नहीं । फौज पाछी ठिकाणे गई।" ज्यू भीखणजी सूं आंपे चरचा करां यांरौ वांसौ करांतो एक तो यार सूत्रां रौ जोर घणौ, कांम पड्यां सूत्र दिखावै। पोते आचार मै सेठा फेर आंप माहि रहग सो आंपां री माहिली वातां जाणे सो यां सू चरचा कीधां आपां रा तूंतरा-तूंतरा कर नै विखेर देवैला यांरी तिथ न करा तो मैं सांकंडा चाल तो आपां रौ ईज जश हुसी । रुघनाथजी रा चेला तीखा चाल है यूं लोक कहसी। इम कही जैमलजी तौ वांसौ न कीयो। अनै रुघनाथजी वांसौ कीयौ । चरचा ठाम-ठाम करी जद उणांरा श्रावक ईज घणा समस्या । ५. फकीर वालो दुपटौ __ स्वामीजी नवौ साधपणी लेवा त्यार थया । जद जोधपुर जैमलजी भेळी चौमासौ कीधौ । जैमलजी रा साधां रै श्रद्धा बैठी। थिरपालजी फतैचन्दजी आदि रै वले जैमलजी रै पिण श्रद्धा बैठी। औ समाचार रुघनाथजी सुण्या। जद सोजत रा भायां कनै कागद लिखायने जोधपुर मैल्या। जैमलजी नै कहिवायौ थारै श्रद्धा भीखणजी री बैठी सुणी है सो थांरा टोळा माहिला चोखा-चोखा साध चोखी-चोखी आर्यां देखसी ते तो लेसी। बाकी घणां नै लाडै कोडै घर छोड़ाया ते सर्व थांनै रोवसी। नाम तो भीखणजी रौ हुसी टोळो भीखणजी रौ बाजसी थारो नाम पिण विशेष रहै नहीं। फकीर वालो दुपटौ हुसी । जिम एक फकीर नै दुपटो राजा दीयो । सो साहूकार नौ बेटौ परणीजै जद फकीर कनै दुपटौ मांग्यौ। जद फकीर बोल्यो-मोनै जांन सांथ ले जावौ तौ देवू । जद साहूकार दुपटौ लेई फकीर नै साथे ले लीयौ। हिवै जांन उण गामरै गोरवै ऊतरी। बींद देखवा लोक आया। वींद ने सरावै, गैहणा कपड़ा भारी बींद पिण रूपवंत घणौ, पिण दुपटो तो घणौ ई भारी। दुपटा नै लोक घणौ सरावै । जद फकीर बोल्यौ-दुपटौ हम गरीब रौ है। जद साहूकार वरज्यो रे ! बोल मती सांई ! आगै सैहर माहै गया। फेर
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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