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________________ २७२ श्रावक दृष्टांत २४. से पूरिया ई पूरिया है संवत १८५६ रे वर्ष नाथद्वारा मै भीखणजी स्वामी वायरा कारण सूं १३ महीनां रै आसरै रह्या । भीलोडा रा ४ जणा आया । पूरौ नाबे रौ १ रतनजी छाजेर भैरूंदास चंडाल्यौ ३ एक जणी फेर ओ च्यारूं जणा स्वामीजी सूं घणा दिन चरचा कर नै समझ नै गुरु कीया । थांनक करायौ तिण मै रहे जद मजी स्वामी भैरूंदास नै पूछ्यौ -थे साध कडाई में किसायक ? जद भैरूंदानजी बोल्यौ -आ सरधा नै औ आचार देखता तो से पूरीया ई पूरीया है । जद मजी स्वामी पूछो - पूरीया कांई ? जद भैरूंदासजी बोल्यो - एक गांम रौ ठाकुर तिण रै भक्तां रौ इष्ट । सौ भक्तां नै जीमाय चरणामृत ले पग धोय नै पीये । सो एकदा घणा भक्तां नै जीमाय चरणामृत लैतां पोतारा गांम रौ पूरीयो मेघवाल भक्त थयौ ते पिण त्यां भक्तां भेळौ हुंतौ तिणरी चरणामृत लेतां मूंहढ़ा साहमौ जोयौ ओलख्यो । जद बोल्यो - पूरीया तूं रे ! जद ऊ बोल्यो - मौने कांई कही ठाकरां ! से पूरीया ई पूरीया है, कोई माहे रगड़ है, कोई थोरी है, कोई बावरी है, कांई सैंधा रा ईंज लागू हो कांई ? भैरूदासजी बोल्यो - ज्यू आ सरधा आचार देखता और से पूरीया सरीषा है । २५. थुकमथुक्का धक्कमधका पछै छक्कमछक्का स्वामी भीखणजी संवत १८५७ रै वर्ष भीलोडे पधारया । आचार सरधारी ढाळां राते बखाण मै कहिवा लागा । परषदा घणी आई । केयक नागौरी आदि घणा खांण उठ्यां पछै स्वामीजी ने आण दराई काले विहार कियौ तौ तीर्थंकरांनीं आण है । सील भाग त्यांरा टोला मझे, तिण नै दिख्या दै तांम रे पिण छोटा रै पगे पाडै नहीं, इसड़ौ करै अज्ञानी काम रे 'तुम्हे जोजो अंधारौ भेख मैं' आ ढाल थे कही । सो "किरौ सील भागौ अनै किनें बड़ौ राख्यो” इण बात री काळे तार काढणो है। मूंहढा मांहि थी अकबक बोलै, पिण स्वामीजी तौ मूंन राखी । जद घणराजजी नागोरी बोल्यो - देवळ री प्रतिमा बैठी ज्यूं बैठा हो, पाछा बोलो क्यूं नहीं, तो पिण स्वामीजी मूंन राखी, जद लातर नै जाता
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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