SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० श्रावक दृष्टांत १७. सुभ जोग संवर किस न्याय ? रीयां मै राजमलजी बौहरौ रतनजी कनै गयौ । चरचा करता रतनजी बोल्यौ-सुभ जोग ते संवर। जद राजमलजी कह्यौ-संवर नौ स्वभाव तो कर्म रोकण रौ है । अनै सुभ जोगां सूं तो पुन्य बंधे, पिण रुकै नहीं, तिण सूं सुभजोग संवर किस न्याय? ___ जद रतनजी बोल्यौ-सुभ जोग प्रवर्ते तिण वेला असुभ जोग रा कर्म लागै ते न्याय, सुभ जोग संवर। जद राजमलजी बोहरी बोल्यौ--इण लेखै असुभ जोग नै ई संवर कहौ, असुभ जोग वर्ते तिण वेला सुभ जोग रा कर्म न लागै ते लेखै । जद रतनजी बोल्यौ-सूत्र में तो अजोग संवर ईज कह्यौ है म्हारै परंपरा थी सुभ जोगां नै संवर कहां छां । १८. धर्म हुवौ के पाप ? भगवानदासजी नम्बरीयौ नगर सेठ । संवेगियां री श्रद्धा । ते पाली मै रतनजी ने पूछयौ-काचा पाणी री लोटी मै माखी पड़ी बारै कांढे तिण ने धर्म हुवी के पाप? जद रतनजी जाब मै अटक्यौ, धर्म कहै तो हिंस्या मै धर्म, देहरापंथ्यां री श्रद्धा मै मिलै । पाप कहै तो श्रद्धा उठे, जद क्रोध रै वश अकबक बोलवा लागो थे जांणो हं नगर सेठ छ, लोकां ने डरावं, पिण म्हे न डरां इत्यादिक बोलवा लागो। १९. साहमीवच्छल नै क्यूं निषेधौ ? फेर भगवानदासजी बोल्या-श्रावक नै पोख्या कांई हुवै ? जद रतनजी बोल्या- बेला रा पारणा वाळा श्रावक नै पोख्यां धर्म है। जद भगवानदासजी बोल्या-साध बेला रा पारणा वाळा नै दीधा तथा पारणा विना ई श्रावक नै पोख्यां धर्म क्यूं न कहौ ? अन इम सर्व श्रावका में पोख्यां धर्म कहो तो म्हारा साहमीवच्छल ने क्यूं निषेधौ ? अठ पिण सुद्ध जाब न आयौ। २०. ऊ वैद्य बुद्धिहीण पीपार मै दौलजी लंणावत सं रतनजी चरचा करतां क्रोध मै आय बोल्यौ-सीतंगिया नै दूध मिश्री पावै ज्यूं सीतंग घणौ वधै ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy