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________________ २५३ दृष्टांत : २१ जद भीमजी बोल्यौ-भीखणजी रा साध उठे है, त्यां कनै पिण जावा हां । अने उठे जैमलजी री आर्यां है, त्यां कनै पिण जावां हां। पछे हेमजी स्वामी ने पूछ्यौ-थांरे गुरु कुंण ? जद हेमजी स्वामी तीखा बोल्या-म्हारै गुरु है पूजश्री भीखणजी स्वामी। जद हीरजी बोल्यौ-इसा तीखा बोलौ हौ कांई चरचा करण रौ मन है ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-थारौ मन हुवै तौ भला ई करौ। जद हीरजी पूछ्यौ-गायां घर मै बळती थी तिण रा घर रौ किंवाड़ खोल्यौ, तिण नै काई थयौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-थे किंवाड़ खोलौ के नहीं ? जद हीरजी बोल्यौ-म्हे तो किंवाड़ खोल देवां। जद हेमजी स्वामी बोल्या---म्हे तो कहां आ भावना इ खोटी “कद गायां वळे नै हूं वारे काढू," इसी भावना इ आछी नहीं। इसी भावना तौ भावणी-"साधु आवे तो हूं बखांण सुणं, आहार पांणी वहिरावू, सामायक पोषा करू," ए भावना तौ चोखी अने गायां बळवा री तौ भावना इ खोटी। जद हीरजी कष्ट हुवौ या चरचा छोड़नै दूजी चरचा करवा लागौ । भीखणजी कहै.--"थोड़ा दोष सूं साधपणौ भागै" सो ए बात मिलै नहीं। जिम एक साहूकार रे प्रदेशां थी माल री जिहाजां आई सो अड़तालीस ओर्यो भरी इतले एक जाचक आयौ साहूकार नी विरदावळियां बोली । जद साहूकार राजी हुवौ । अड़तालीस ओर्यो नी कुंच्यां मुंहढा आगे मेल दीधी। कहे एक कूची उठाय लै। जिण ओरी मै माल निकळे सो थारो । जद एक कंची उठाय नै ओरी खोली देखै तौ सींदरा सूं भरी। पाछौ आय नै कहेसेठजी सिंदरा नी ओरी निकळी सो सींदरा सं काई पासी लेउं ? तिवारे दूजीबार साहूकार ते कूची सर्व कंचिया भेली न्हाख नै कहै-फेर उठावौ । जद तिण वले कंची लीधी। सो उवा की उवा सींदरा नी ओरी नी कंची आई । ओरो देख नै पाछौ आय कहै-सेठजी उवा सींदरा नी ओरी ज आई, म्हारा भाग मै सींदरा इज है। जद साहूकार गुमासतां नै पूछयौ-जोवौ सिंदरां ना कोई दांम लागा ? जद गुमासतां बही देख नै कह्यौ-४८ हजार रुपैया लागा। ते सींदरा जिहाजां रा लंगड़ नांखवा नां हुंता। जद तिण न ४८ हजार रुपीया दीधा । हीरजी बोल्यौ-त्यां सींदरा ना इ ४८ हजार रुपीया आया तो जिहाजां माहिला माल रा तो अनेक लाखां रुपीया होसी । ज्यूं जिहाजां रा माल समांन साधुपणौ, अने सींदरा ना दांम जिसा दोष सूं खाली किम हुवै ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-इक्यासी पाटीयां री जिहाज पिण विच एक पाटीयौ कोई नहीं, वेसण वाला भोळा मांहे माल भर नै जिहाज चलाई
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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