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________________ दृष्टांत : २००-३०१ २३७ तब लोमड़ी बोली-'चौधराहट में खींचातान बहुत है। दोनों कान चले गए इसलिए वापस आई हूं।' इसी प्रकार साधुपन स्वीकार कर उसे अच्छी तरह नहीं पालते, दोष लगाते हैं, प्रायश्चित्त नहीं करते और साधु का नाम धराते हैं, लोगों में पूजाते हैं, वे इहलोक और परलोक में लोमड़ी की भांति खराब होते हैं, नरक और निगोद में गोता लगाते हैं । २६६. दिल दहल उठते हैं किसी ने कहा-भीखणजी ! जहां तुम जाते हो, वहां लोगों के दिल दहल जाते तब स्वामीजी बोले-'गांव में मंत्रवादी आता है। वह कहता है----'सवेरे डायनों को गीले कांटों में जलाऊंगा।' तब डायनों के दिल दहल उठते हैं और उनके ज्ञातिजनों में भी आतंक छा जाता है, पर दूसरे लोग तो राजी होते हैं। इसी प्रकार साधु जब गांव में आते हैं, तब जो वेषधारी और शिथिलाचारी होते हैं, उनके दिल दहल जाते हैं अथवा उनके श्रावक कांप उठते हैं। किन्तु जो धर्म प्रेमी होते हैं, वे तो बहुत राजी होते हैं। वे सोचते हैं—'व्याख्यान सुनेंगे, सुपात्र दान देंगे, ज्ञान सीखेंगे, साधुओं की सेवा करेंगे' -इस प्रकार वे प्रसन्न होते हैं।" ३००. पीला ही पीला दिखाई देता है स्वामीजी से चर्चा करते समय कोई अंट-संट बोला-तुम्हारी श्रद्धा कपटपूर्ण है। आचार में बहुत प्रपंच है। __ तब स्वामीजी बोले-हमारी मान्यता और आचार तो अच्छा है, पर तुम्हें ऐसा ही दिखाई देता है । अपनी आंखों में पीलिया होता है तब सब मनुष्य उसे पीले-पीले दिखाई देते हैं । वह लोगों से कहता है-आजकल गांव में पीलापन बहुत हो गया है । सब मनुष्य पीले ही पीले दिखाई देते हैं। तब लोग बोले- मनुष्य तो सब अच्छे हैं, सुन्दर हैं। तुम्हारी आंख में पीलिया का रोग है, इसलिए तुम्हें सब पीले दिखाई देते हैं। ___इस प्रकार मान्यता तो कपटपूर्ण अपनी है और गुरु स्वयं के अयोग्य हैं । यह बात दिखाई नहीं देती और साधुओं को अयोग्य बतलाता है और उनकी मान्यता को कपटपूर्ण कहता है। ३०१. तीन नौकाएं अच्छे और बुरे गुरु पर स्वामीजी ने नौका का दृष्टांत दिया - तीन नौकाएं हैंएक तो काष्ठ की अखंड नौका है । दूसरी काष्ठ की फूटी हुई नौका है और तीसरी पत्थर की नौका है। अखंड नौका के समान साधु होता है जो स्वयं तरता है और दूसरों को तारता है । फूटी हुई नौका के समान वेषधारी होता है, जो स्वयं डूबता है और दूसरों को डुबोता है। पत्थर की नौका के समान तीन सौ तिरेसठ पाषंडी होते हैं । वे प्रत्यक्ष विरुद्ध दिखाई देते हैं। समझदार आदमी प्रथमतः तो उन्हें मानता नहीं और कदाचित् गुरु किए हुए हों
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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