SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिख्खु दृष्टांत २४४. रचना इस प्रकार करते हैं आगरिया की घटना है। प्रतापजी कोठारी बोला-"आप रचनाएं किस तरह करते हैं ?" स्वामीजी के पास एक टोपसो' थी। उसमें सफेदा घुला हुआ था। इतने में हवा चली। इस वातावरण को देख आप एक पद की रचना करते हुए बोले-"यह छोटीसी टोपसी है। इसमें सफेदा घुला हुआ है। यत्न करके रखना, अन्यथा इसमें बालू गिर जाएगी। इस पद की रचना करते हुए बोले-रचना इस प्रकार करते हैं।" यह सुनकर प्रतापजी बहुत प्रसन्न हुए। २४५. मुझे भोजन कराएं संवत् १८५६ की घटना है । नाथद्वारा में स्वामीजी के पास एक दादूपंथी साधु आया। स्वामीजी का व्याख्यान सुन बहुत प्रसन्न हुआ। वह प्रतिदिन व्याख्यान सुनने लगा। एक दिन उसने स्वामीजी से कहा-'आप श्रावकों से कहें कि वे मुझे भोजन कराएं।" तब स्वामीजी बोले-"चाहे श्रावकों से कह कर तुम्हें भोजन कराएं और चाहें अपने पात्र में से निकाल कर रोटी दें। कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यदि गृहस्थ को भोजन कराने के लिए कहना हो तो रोटियां अधिक लाकर तुम्हें दे दें।" । तब दादूपंथी बोला- "इसका अर्थ यह हुआ कि आपकी मान्यता दान देते हुए लोगों को बरजने और मनाही करने की है।" तब स्वामीजी बोले- "देने वाले को मनाही करो या तुम्हारे पास से छीन लो, एक ही बात है।" यह सुनकर दादूपंथी चला गया। २४६. तुम धन्य हो अपनी महिमा बढाने के लिए जो छल-कपट पूर्वक बोलते हैं, उनकी पहिचान के लिए स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"किसी ने बेला किया। वह अपने बेले की महिमा बढाने के लिए उपवास करने वाले का गुणानुवाद करता है-तू धन्य है ! सो इस भयंकर गर्मी की मौसम में तूने उपवास किया है । तब उपवास करने वाला बोला-“मैंने तो उपवास ही किया है, पर तुमने बेला किया है, तुम धन्य हो।" इस प्रकार छलनापूर्ण वचन के द्वारा अपने बेले की महिमा बढाना चाहता है, उसे अभिमानी और अहंकारी जानना चाहिए । २४७. दर्शन देने कहां जाऊं? आचार्य रुघनाथजी की मां भी घर छोड़कर साध्वी बनी थी। उसके शरीर में कोई बीमारी हो गई । तब रुघनाथजी ने कहा- "भीखणजी ! मेरी संसार पक्षीया माता को दर्शन दे माओ।" १. रंग घोलने की छोटी दवात ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy