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________________ दृष्टांत : २४२-२४३ उसे भौकने लग जाते हैं । उन कुत्तों के परस्पर कब एका था ? पर जब हाथी माता है, तब सब एक हो जाते हैं।" ऐसा है कुत्तों का स्वभाव । इसी प्रकार अमुक-अमुक संप्रदाय के साधु परस्पर 'क' 'ख' की मान्यता को गलत बतलाता है और 'ख' 'क' की मान्यता को गलत बतलाता है। उनके परस्पर अनेक मान्यताओं का अन्तर है। वे परस्पर एक-दूसरे को साधु भी नहीं मानते और जब साधुओं से चर्चा करने का काम पड़ता है, तब वे एक हो जाते हैं। २४२. बासी रोटी सजीव या अजीव ? अमुक-अमुक संप्रदाय वालों में कुछ तो बासी रोटी, जिसे तोड़ने पर लार जैसी निकलती है, में द्वीन्द्रिय जीव बतलाते हैं। वे ऐसा कहते हैं - "जैसे पैर से नहेरूवा निकलता है, वैसे ही रोटी में लार निकलती है।" और उनमें से कुछेक भिक्षा में बासी रोटी प्राप्त कर खा लेते हैं। इस विषय पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया "कोई मुट्ठी भरकर चने और गेहूं खाता है, उसे साधु कहा जाए या असाधु ?" . तब वे बोले-"गेहूं खाने वाला असाधु कहलाएगा?" तब स्वामीजी बोले--"यदि गेहूं खाने वाला असाधु कहलाएगा, तो कृमियों को खाने वाला साधु कैसे कहलाएगा ? जो बासी रोटी में जीव बतलाते हैं, उनके मतानुसार बासी रोटी खाने वाला कृमि खाने वाला होता है । कृमि खाने वाले को साधु कैसे कहा जाए ? इस न्याय से बासी रोटी में जीव बताने वालों के मतानुसार बासी रोटी खाने वाले असाधु ठहरे।" "और जो बासी रोटी खाते हैं, उनसे पूछा जाए-जो झूठ बोलता है, वह साधु या असाधु ?" तब वे कहेंगे--"असाधु ।" तब स्वामीजी बोले- "तुम तो बासी रोटी को मजीव बतलाते हो; और वे बासी रोटी में द्वीन्द्रिय जीव बतलाते हैं। इस प्रकार तुम्हारे ही मतानुसार वे असत्यभाषी कहलाएंगे। फिर उन्हें साधु कैसे कहा जाए ?" "तथा तुम तो बासी रोटी को अजीव बतलाते हो और वे बासी रोटी में जीव बतलाते हैं । और अजीव को जीब मानता है, उसे मिथ्यात्वी कहा जाता है। तुम्हारे मतानुसार बासी रोटी में जीव मानने वाले मिथ्यात्वी कहलाएंगे।" ___ "इस प्रकार 'क' के मतानुसार 'ख' असाधु हैं और 'ख' के मतानुसार 'क' असाधु हैं । और वे कहते हैं - 'हम परस्पर एक-दूसरे को साधु मानते हैं । ऐसा मिथ्यात्व रूपी अन्धकार उनके घर में है। २४३. जोड़ने वाला अच्छा या तोड़ने वाला ? किसी ने कहा-'भीखणजी ! तुम जोड़ें (रचनाएं) बहुत करते हो।" तब स्वामीजी बोले- “एक साहूकार के दो पुत्र थे । एक जोड़ता है, और दूसरा तोड़ता है, गमाता है । जो जोड़ता है वह अच्छा या तोड़ता है, गमाता है वह अच्छा ? संसार की दृष्टि में जो जोड़ता है, वह अच्छा कहलाता है ; जो तोड़ता है, गमाता है वह अच्छा नहीं कहलाता।" यह सुनकर वह अवाक रह गया।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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