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________________ TE . दृष्टांत : २३०-२३१ २११ "जैसे किसी व्यक्ति को अनछना जल पीने का त्याग है । वह जल को छानता है, पीने के लिए छानता है, दया के लिए नहीं छानता है। यदि वह नहीं छानता है, तो दया और अधिक पुष्ट होती है।" "वह कैसे?" “यदि वह नहीं छानता है, तो पी नहीं सकता, क्योंकि उसे अनछना जल पीने का त्याग है । अन छने जल पीने का त्याग है, इसलिए यदि वह जल नहीं छानेगा, तो जल पी नहीं सकेगा। इस दृष्टि से वह जल को छानता है, वह अपनी अव्रत (छूट) का उपभोग करने के लिए छानता है । उसमें धर्म नहीं है । २३०. तो संयम और असंयम दोनों सूखेंगे कुछ कहते हैं- "श्रावक के असंयम का सिंचन करने से संयम बढता है ।" उस पर वे कुहेतु का प्रयोग करते हैं-नीम के पेड़ में आम का पेड़ पैदा हो गया। नीम की जड़ में पानी सींचने से नीम और आम दोनों ही प्रफुल्लित हो जाते हैं। इसी प्रकार श्रावक के असंयम का सिंचन करने से दोनों बढते हैं।" तब स्वामीजी बोले-"इस प्रकार असंयम का सिंचन करने से संयम बढता है, तो उनके अनुसार श्रावक यदि अब्रह्मचर्य का सेवन करता है, वह असंयम का सेवन करता है, उससे संयम भी पुष्ट होना चाहिए। और नीम की जड़ में अग्नि डालने से नीम और आम दोनों जल जाते हैं, जैसे किसी ने आजीवन ब्रह्मचर्य स्वीकार किया, उसने असंयम को जला डाला; प्रश्नकर्ता के अनुसार उसके असंयम और संयम दोनों ही जल जाने चाहिए।" "गृहस्थ को पारणा कराने में असंयम का सिंचन हुआ, उससे संयम बढता है, ऐसा जो कहते हैं, उनके अनुसार उपवास कराने पर असंयम सूखता है, तो संयम भी सूखना चाहिए।" ___“इसी प्रकार हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का सेवन कराने से असंयम का सिंचन होता है, तो प्रश्नकर्ता के अनुसार संयम बढता है' वह भी कहना चाहिए । और हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का त्याग करने-कराने से यदि असंयम सूखता है, तो उनके अनुसार 'व्रत सूखता है' यह भी कहना होगा।" २३१. मौन की भाषा कुछ कहते हैं-"सावद्य दान के विषय में 'पुण्य, पाप और मिश्र होता है,' यह नहीं करना चाहिए; इसलिए हम उसके विषय में मौन रखते हैं।" तब स्वामीजी ने मौनी बाबा का दृष्टांत दिया-"कोई मौनी बाबा एक गांव में आया। उसके साथ बहुत सारे चेले थे। वे आटा, घी, गुड़ इत्यादि मुख से बोल कर नहीं मांगते, किन्तु संकेत जता कर मांगते हैं । अंगुलियों को ऊंचा कर संकेत करते हैंइतना किलो आटा, इतना किलो घी, इतनी दाल और इतना गुड़।" ___"तब गांव के चौधरी और पटवारी कम देना चाहते हैं, तब वह अपने चेलों को 'हूंकार' से संकेत कर घरों और दुकानों के खपरेल से बने छप्पर तुड़वा देता है।" तब लोग बोले-“यह मौनी बाबा मौन के संकेत की भाषा बोलता है और
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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