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________________ २१० भिक्खु दृष्टांत २२८. सामायिक की सुरक्षा कोई कहता है-“सामायिक में शरीर का प्रमार्जन कर खुजलाना धर्म है और शरीर का प्रमार्जन किए बिना उसे खुजलाता है, तो उसे पाप लगता है।" तब स्वामीजी बोले--"चींटी और मच्छर सामायिक में काट खाए, तो शरीर को काटा या सामायिक को।" तब वह बोला--- "शरीर को काटा।" तब स्वामीजी बोले-"शरीर का प्रमार्जन करके खुजलाता है, तो वह सुरक्षा सामायिक की करता है, या शरीर की ?" तब वह विपरीत मान्यता के आधार पर बोला- "सुरक्षा सामायिक की करता तब स्वामीजी बोले-“वह नहीं खुजलाता, तो सामायिक की सुरक्षा तो और ज्यादा होती। जो बिना प्रमार्जन किए खुजलाने का त्याग है। सामायिक में प्रमार्जन किए बिना शरीर को नहीं खुजला सकता । यदि शरीर को न खुजलाता, मच्छर आदि के काटने को सहन करता, तो निर्जरा अधिक होती। उससे सामायिक और अधिक पुष्ट होता । इस दृष्टि से जो शरीर का प्रमार्जन करता है, वह सामायिक की सुरक्षा के लिए नहीं करता । मच्छर ने शरीर को काटा, सामायिक को नहीं काटा, ये तो वे भी कहते हैं । शरीर की सुरक्षा के लिए उसका प्रमार्जन करते हैं और उसे खुजलाते हैं, किन्तु सामायिक की सुरक्षा के लिए प्रमार्जन नहीं करते । ढाई द्वीप (मनुष्य-क्षेत्र) के बाहर समुद्रों में रहने वाले तिर्यच श्रावक सामायिक और पौषध व्रत का अभ्यास करते हैं, वे कौन-सी प्रमार्जनी रखते हैं ? सामायिक की सुरक्षा वे भी बहुत सावधानी से करते हैं । अयतना (मसंयम) न करना ही सामायिक की सुरक्षा है । २२६. पौषध में प्रतिलेखन क्यों ? पौषध में कोई श्रावक वस्त्र अधिक रखता है, कोई कम रखता है। जो अधिक रखता है, उसके अधिक अवत; जो कम रखता है, उसके कम अव्रत । तब कोई प्रश्न करता है-“यदि कोई पौषध में प्रतिलेखन न करे, तो उसे प्रायश्चित्त क्यों दिया जाए ?" तब स्वामीजी बोले-"पौषध में अप्रतिलेखित' वस्त्रों को भोगने का त्याग होता है । उसने प्रतिलेखना नहीं की और उन्हें काम में लेता है, इसलिए उसके त्याग का भंग होता है। उसका प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। पौषध में भी शरीर अव्रत में है। उस शरीर की सुख-सुविधा के लिए वस्त्रों को इधर-उधर करता है, उनका प्रमार्जन करता है, वह सावध है। ___"पोषध के समय जो वस्त्र अपने पास रखे, उनका न तो प्रतिलेखन करता है और न उन्हें काम में लेता है, तो उससे विशेष कठिनाई को सहनी होती है। उससे पौषध और अधिक पुष्ट होता है। कष्ट सहने की सामर्थ्य नहीं है, इसलिए वस्त्रों का प्रतिलेखन कर उनको काम में लेता है । १. जिन वस्त्रों की प्रतिलेखना न की हो। .
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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