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________________ १७६ भिक्खु दृष्टात का पाप जितना ज्ञानी पुरुषों ने देखा है, उसे उसी समय लग गया। तुम लोग किसी को तपस्या का धारणा (उसके पहले दिन भोजन) कराते हो और भविष्य में वह तपस्या करेगा, उसका फल मुझे भी मिलेगा, यह सोच कर धारणा कराते हो, तब तुम्हारे हिसाब से मरते हुए असंयती को बचा लेने पर वह भविष्य में जो भी हिंसा करेगा उराका पाप तुम्हें लगेगा, यह तुम्हारी मान्यता से फलित होता है। इसका कारण यह है कि भविष्य में तपस्या करेगा उसका लाभ तुम्हें मिलता है तो जिसे बचाया, वह भविष्य में हिंसा करेगा, उसका पापांश भी तुम्हें लगेगा। ज्ञानी पुरुषों ने तो ऐसा कहा है--मरते हुए असंयती को किसी ने बचाया उसे जितना पाप ज्ञानी पुरुषों ने देखा उतना उसी समय लग चुका। भविष्य में वह जो करेगा उसका पुण्य-पाप उसे नहीं मिलेगा। १३६. पाप उसी को लगेगा किसी ने पूछा-तुम किसी को त्याग कराते हो और वह त्याग को तोड़ देता है तो तुम्हें पाप लगता है। तब स्वामीजी बोले-किसी साहूकार ने सौ रुपयों का कपड़ा बेचा। उसे काफी लाभ हुआ । खरीददार ने एक-एक रुपये के दो-दो रुपये कमाये । किन्तु उसका लाभ उस बेचने वाले साहूकार को नहीं मिलता। और कपड़ा खरीदने वाला आगे चल कर सारा कपड़ा जला देता है तो उसका नुकसान उसी को भुगतना होता है, पर साहूकार के घर में वह नुकसान नहीं होता। इसी प्रकार हमने किसी को त्याग दिलाए, उसका लाभ हमें मिल चुका । त्याग लेने वाला यदि अपने लिए हुए त्याग को ठीक ढंग से पालेगा तो लाभ उसी को मिलेगा और यदि वह अपने त्याग को तोड़ेगा तो उसका पाप उसी को लगेगा, वह हमें नहीं लगेगा । १३७. जैसा भाव वैसा लाभ स्वामीजी ने एक और दृष्टांत दिया-किसी दाता ने साधु को घी का दान दिया। साधु ने असावधानी बरती। उस घी से अनेक चींटिया मरी तो उनका पाप साधु को लगा किन्तु वह दाता को नहीं लगा। और उस साधु ने वह घी सहर्ष किसी तपस्वी साधु को दिया, स्वयं नहीं खाया। उसके तीर्थंकर गोत्रकर्म का बंध हुभा। उसका लाभ साधु को हुआ | अपने-अपने भाव के अनुसार लाभ होता है । १३८. दुश्मन का सहयोग करने वाला भी दुश्मन किसी ने पूछा- असंयती जीव के पोषण में पाप बतलाते हो, इसका न्याय क्या ___तब स्वामीजी बोले-किसी साहूकार के रुपयों की नौली कमर में बंधी हुई थी। उसे देख चोर ने उसका पीछा किया। आगे साहूकार और उसके पीछे चोर दौड़ रहा है। इस प्रकार दौड़ते-दौड़ते चोर लड़खड़ा कर नीचे गिर गया। तब किसी ने चोर को अफीम खिला, पानी, पिला कर तैयार कर दिया। उस अफीम खिलाने वाले को माहूकार का दुश्मन मानना चाहिए क्योंकि उसने दुश्मन का सहयोग किया है।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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