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________________ १५३ दृष्टांत : ८८-८९ स्त्रियां आपको चाहते हैं । वे आपको देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं उन्हें माप बहुत प्रिय लगते हैं । इसका क्या कारण ? आपमें ऐसा कौन-सा गुण है ?" तब स्वामीजी बोले- 'कोई साहूकार परदेश गया हुआ था। उसने अपने घर सन्देशवाहक भेजा और खर्चे के लिए रुपए-पैसे भी भेजे। सेठाणीजी सन्देशवाहक को देखकर बहुत राजी हुईं। गरम पानी से उसके पैर धुलाए । भली-भांति खाना पका कर उसे खिलाया। उसके पास बैठकर अपने पति के समाचार पूछने लगीं--"साहजी शरीर में कैसे हैं-उनका स्वास्थ्य कैसा है ? उनके शरीर में सुख-शांति हैं ? साहजी कहां सोते हैं ? कहां बैठते हैं ?' सन्देशवाहक जैसे-जैसे समाचार बतलाता है, वैसे-वैसे वह सुनकर बहुत राजी होती है। पर सन्देशवाहक को देख प्रसन्न होने का कारण यह है कि वह उसके पति का समाचार उसे बतलाता है । "इसी प्रकार हम भगवान् के गुण और उनका सन्देश लोगों को बतलाते हैं। संसार से मुक्त होने का मार्ग बतलाते हैं । यही कारण है कि पुरुष और स्त्रियां हमसे बहुत प्रसन्न रहती हैं।" ८८. यह किसने देखा? किसी समय केलवा में ठाकर मोखमसिंहजी ने पूछा-"आप भविष्य और अतीत का लेखा-जोखा बतलाते हैं । वह किसने देखा है ?' तब स्वामीजी बोले --- "तुम्हारे बाप, दादे और परदादे हुए । तुम उन पीढ़ियों के नाम और उनकी पुरानी बातें जानते हो, वे सब किसने देखे हैं ?" तब ठाकर बोले-"बही भाटों की पोथियों में पुरखों के नाम और बातें लिखी हुई हैं उनके आधार पर हम जानते हैं।" तब स्वामीजी बोले -"बहीभाटों के झूठ बोलने का त्याग नहीं है। उनकी लिखी हुई बातों को भी तुम सच मानते हो, तब फिर ज्ञानी पुरुषों द्वारा कहे हुए शास्त्र असत्य कैसे होंगे ? वे सत्य ही हैं।" यह सुन ठाकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले-"आपने बहुत अच्छा समाधान किया।" ८९. मेरी सामर्थ्य इतनी ही है ढुंढाड (जयपुर राज्य का एक प्रदेश) के एक गांव में स्वामीजी पधारे। वहां के जागीरदार ने स्वामीजी के चरणों में अट्ठन्नी' के टक्के रखे । स्वामीजी बोले- "हम तो टक्के-पैसे नहीं लेते।" तब जागीरदार बोला-'आप मोहर लायक है, पर मेरी सामर्थ्य इतनी ही है । अगली बार आप पधारेंगे तब पूरा रुपया भेंट करूंगा।" तब स्वामीजी बोले- "हम तो रुपए, मोहर आदि कुछ भी नहीं रखते।" यह सुन जागीरदार बहुत खुश हुआ। वह गुणग्राम करने लगा-"आपकी करणी धन्य है।" १. आधा रुपया। २.दो पैसे का सिक्का ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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