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________________ १५२ भिक्ख दष्टांत तब कपूरजी ने कहा-"नया झगड़ा क्यों करूंगा?" उसके बाद में वह श्राविकाओं के पास जाकर बोला-"अपन परस्पर क्षमायाचना करते हैं । तुमने तो बहुत अयोग्य व्यवहार किया, पर मुझे तो राग-द्वेष नहीं रखना।" तब श्राविकाओं ने कहा- "अयोग्य व्यवहार तुमने किया है या हमने ?"इस प्रकार परस्पर झगड़ा बढ़ गया। वापस आकर स्वामीजी से बोला-"भीखणजी ! झगड़ा तो उल्टा बढ़ गया।" तव स्वामीजी बोले- "हमने तुम्हें पहले ही कहा था।" ८३. यहां कौन-सा दुःख था हेमजी स्वामी ने स्वामीजी से कहा - "तिलोकजी, चन्द्रभाणजी, सन्तोषचन्दजी, शिवरामदासजी आदि गण से पृथक् होकर अलग-अलग घूम रहे हैं । वे सब इकट्ठे होकर एक साथ रहें, तो उनका भी एक गण बन सकता है। तब स्वामीजी बोले--- “ऐसी करामात हो, तो यहां से क्यों जाते ? यहां कौन-सा दुःख था?" ८४. हम तो हृदय परिवर्तन करते हैं किसी वेषधारी साधु ने कहा-'भीखणजी करोड़ कसाइयों से भी ज्यादा भारी । तब स्वामीजी बोले-"उनकी दृष्टि से तो यह बिलकुल ठीक है। कारण, कताई तो बकरों को मारते हैं । उन्होंने कहने वालों का क्या बिगाड़ा ? और हम तो उनके श्रावकों का हृदय परिवर्तन करते हैं । फलतः श्रावक उनके सम्प्रदाय से टूट जाते हैं । इसलिए वे ऐसा कहते है। ८५. आज तो रह जाते हैं भीखणजी स्वामी सिरियारी से विहार कर रहे थे। तब सामो भंडारी उनके चरणों में अपनी पगड़ी रख कर आग्रहपूर्वक बोला-"आज आप विहार न करें।" तब स्वामीजी बोले-"माज तो हम रह जाते हैं, पर भविष्य में ऐसा आग्रहपूर्ण अनुरोध मत करना।" ८६. आज तो वापस चलें स्वामीजी आगरिया से विहार कर रहे थे, तब भाइयों ने वहां रहने के लिए अत्यंत आग्रह किया। पर स्वामीजी ने उसे स्वीकार नहीं किया । वे विहार कर गए । गांव के बाहर कुछ दूर गए। तब भारीमालजी स्वामी बोले-'आपने प्रार्थना नहीं मानी, इसलिए बेचारे भाई बहुत खिन्म और रूंआसे हो गए। तब स्वामीजी बोले-"आज तो वापस चलें, (पर उन्हें समझा देना कि) भविष्य में भाग्रहपूर्ण अनुरोध न करें।" ८७. हम भगवान के घर के सन्देशवाहक है केलवा में परिषद् जुड़ी हुई थी। वहां के जागीरदार ठाकर मोखमसिंहजी ने स्वामीजी से पूछा- “गांव-गांव से आपके पास प्रार्थनाएं आती हैं। बहुत पुरुष और
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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