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________________ दृष्टांत : ५२-५४ १४१ गूजरमलजी बोले --"यदि चारित्र आत्मा श्रावक में न हो तो उसके सचित वनस्पति खाने के त्याग का क्या अर्थ ?" __ इतने में वहां स्वामीजी पधारे । उनके परस्पर बढ़े हुए विवाद को देखकर कोई कानों में बात न कर सके' इस दृष्टि से स्वामीजी ने अपने दोनों ओर पट्ट रखवा दिए । फिर अपेक्षा-दृष्टि का प्रयोग कर दोनों को समझाया । स्वामीजी ने कहा-"श्रावक में पांचों ही 'चारित्र'' नहीं होते, इस दृष्टि से उसमें आत्माएं सात कही जा सकती हैं और त्याग की अपेक्षा उसमें आंशिक चारित्र होता है इस दृष्टि से उसमें आत्माएं आठ कही जा सकती हैं । यह कह कर उनकी उलझन सुलझा दी। ५२. सम्यक्त्व रहना कठिन गूजरमल से चर्चा करते समय स्वामीजी ने पन्ना पढ कर एक तत्त्व बतलाया। तब गूजरमलजी ने कहा- "आप मुझे अक्षर पढ़ाएं तब स्वामीजी ने अक्षर पढ़ा दिए । ___स्वामीजी ने कहा--'गूजरमल ! तुम सम्यक्त्व को रख सकोगे, यह कठिन लगता है। क्योंकि तुम्हारी आस्था कच्ची है।" यह सुन कर लोगों को आश्चर्य हुआ। जीवन की संध्या में गूजरमल ने केसूरामजी आदि भाइयों से कहा- "स्वामीजी की मान्यता और आचार सम्बन्धी प्ररूपणा तो सही है, पर मुनि नदी को पार करे, उसमें धर्म है' यह प्ररूपणा स्वामीजी की भी सही नहीं है।" । भाइयों ने बहुत कहा----"भगवान ने नदी पार करने की आज्ञा सूत्र में दी है। इस लिए उस प्रवृत्ति में पाप नहीं है।' गूजरमलजी बोले--"यह बात हृदय में नहीं बैठती।" तब लोग बोले- 'भीखणजी स्वामी ने कहा था, 'तुम सम्यक्त्व को नहीं रख सकोगे, वह वचन प्रमाणित हो गया ।" ५३. उठो प्रतिक्रमण करो! पाली में रात्रीकालीन व्याख्यान समाप्त होने पर स्वामीजी पट्ट पर विराज रहे थे और दो भाई (विजयचंदजी पटुआ और उनके साथी दुकान के नीचे खड़े थे। चर्चा करते-करते दोनों को अनुयायी बना दिया। इतने में पश्चिम रात्री हो गई, प्रतिक्रमण का समय आ गया। साधुओं से कहा- "उठो, प्रतिक्रमण करो !" [साधुओं ने पूछा -.-"आप कब विराज गये ?" स्वामीजी ने कहा- "यह तो पूछो कि आप कब सोये ?''] ५४. नगजी स्वामी का तेज करेड़ा में स्वामीजी पधारे। लोक कहते हैं-"नगजी स्वामी का तेज बहुत है।" स्वामीजी ने पूछा-"क्या तेज है ?" तब लोगों ने कहा---'नगजी स्वामी गौचरी पधारते हैं, तब कुत्ती बहुत भौंकती (बहुत कहा-~रे कुत्तिया ! साधुओं को देख मत भौंक, पर वह कहा नहीं मानती । तब उन्होंने कुत्तिया की टांग पकड़ उसे घुमाया और फेंक दिया। वह सीधी १. जैन शास्त्रों में पांच प्रकार का चारित्र बतलाया गया है । वे साधु में ही होते हैं ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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