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________________ ૪૦ भिक्खु दृष्टा ४६. सच्चा तो मुझे ही किया मुनि अखेरामजी के बारे में साधु परस्पर बात कर रहे थे। तब खेतसीजी स्वामी बोले -"अब तो अखेरामजी स्वामी ने अपनी आत्मा को वश में किया है, ऐसा लगता है ।" तब स्वामीजी बोले - "मुझे पूरी प्रतीत नहीं है ।" यह बात किसी ने अखरामजी तक पहुंचा दी | उन्हें वह बात अच्छी नहीं लगी । मुनि अखरामजी ने राजनगर में चतुर्मास किया वहां उन्होंने स्वामीजी के बारे में अनेक दोष पन्ने में लिखकर संघ से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया । चतुर्मास पूरा होने पर अखैरामजी स्वामीजी से मिले । खेतसीजी स्वामी बड़ी तत्परता के साथ उन्हें वंदना करने गए। तब अख़रामजी बोले "मैं संघ से अलग हो चुका हूं । खेतसीजी स्वामी ने प्रयत्न कर अखैरामजी को समझाया। तब अखरामजी आंसू बहाते हुए स्वामीजी से बोले – आपने मेरी प्रतीति नहीं की उससे मेरा मन उदास हो गया, जबकि खेतसीजी ने मेरा विश्वास दिलाया था । तब स्वामीजी बोले - " मैंने प्रतीति नहीं की, यह ठीक ही था। तुमने सच्चा तो मुझे ही बनाया। बेचारे खेतसी ने तुम्हारा विश्वास दिलाया, तुमने उसी को झुठलाया । " यह सुन वे (अखरामजी) राजी हो गए । ५०. "एकलड़ो " जीव स्वामीजी पुर पधारे। मेघो भाट आकर चर्चा करने लगा - "कालवादी ऐसा कहते हैं कि भीखणजी उपदेश की गाथा में तो ऐसा कहते है, "अकेला जीव संसार में भ्रमण करेगा" और नव पदार्थ में पांच को जीव बतलाते हैं। इस दृष्टि से "एकलड़ा " जीव संसार में भ्रमण करेगा ऐसा नहीं, किन्तु "पांच लड़ा" जीव संसार में भ्रमण करेगा, ऐसा कहना चाहिए।' तब स्वामीजी बोले - कालवादी सिद्ध जीवों में कितनी आत्मा बतलाते हैं ? " तब मेघो भाट बोला - " वे सिद्धों में चार आत्मा बतलाते हैं ।" तब स्वामीजी ने पूछा - कालवादी चार आत्माओं को जीव कहते हैं या अजीव ?" तब मेघो भाट बोला -- " वे चार आत्माओं को जीव बतलाते हैं ।" तब स्वामीजी बोले - " वे सिद्धों में चार आत्मा बतलाते हैं और वे उन आत्माओं को जीव बतलाते हैं। इस दृष्टि से "चोलड़ा" जीव तो उन्होंने ही मान लिया । एक "लड़" हमारी अधिक हुई ।" यह कह उसे समझा दिया | स्वामीजी का उत्तर सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ । ५१. आत्मा सात या आठ ? माधोपुर में श्रावक गूजरमलजी और केसूरामजी परस्पर चर्चा में उलझ गए । जमलजी ने श्रावक में आठ आत्माएं' बतलाई और केसूरामजी ने सात । १. मूल आत्मा की तरह आत्मा की पर्याय भी आत्मा कहलाती है । उनका वर्गीकरण करने से आत्मा के आठ प्रकार होते हैं ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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