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________________ दृष्टांत : २७-२९ १३१ २७. सूखे ठूठों को क्या शीतदाह लगे? पीपाड़ में व्याख्यान के समय बहुत लोगों के सुनते हुए ताराचंद सिंघी बोला"तुम व्याख्यान सुनते हो, तुम्हें शीतदाह लग जाएगा, कुम्हला जाओगे।" . तब स्वामीजी बोले -"शीतदाह हरे वृक्षों को जलाता है, पर वह सूखे ढूंठों को क्या जलाएगा ?" यह सुन लोग बहुत राजी हुए कहने लगे-"अच्छा उत्तर दिया ।" २८. मृत्युभोज के लड्ड किशनगढ़ में स्वामीजी पधारे । गौचरी के लिए गए। वेषधारी साधु चर्चा करने उनके पीछे-पीछे आए। स्वामी "पांडिया के बास" मोहल्ले में गोचरी के लिए गए। वेषधारी साधु उस मोहल्ले के मोड़ पर चर्चा करने की दृष्टि से खड़े थे।" तब मलजी मेहता ने कहा--- "इस चर्चा में तुम स्वाद नहीं पाओगे।" बहुत कहा-पर उन्होंने उनकी एक बात नहीं मानी। इतने में स्वामीजी गोचरी कर वापस आए। ___ तब वेषधारी साधुओं ने कहा- "भीखणजी ! तुम वैरागी कहलाते हो, इस मोहल्ले में 'मृत्युभोज' था, वहां से पकवान लाए हो?" तब भीखणजी स्वामी ने कहा--- "इसमें दोष क्या?" तब वेषधारी साधु बोले- "तुम वैरागी कहलाते हो और ऐसा काम करते हो ?" बहुत लोग इकट्ठे हो गए। स्वामीजी बोले- "हम तो मृत्युभोज के पकवान नहीं लाए।" तब वेषधारी साधुओं ने कहा-"यदि नहीं लाए हो, तो पात्र दिखलाओ।" स्वामीजी ने बहुत देर तक पात्र नहीं दिखलाए। पीछे वेषधारी साधुओं ने पात्र दिखलाने के लिए बहुत आग्रह किया । तब बहुत लोगों के सामने उन्होंने पात्र दिखलाए । उनमें लड्डु नहीं । तब वेषधारी साधु बहुत लज्जित हुए। तब मलजी ने कहा-"मैने तुम्हें पहले ही बरजा था कि भीखणजी से चर्चा मत करो। क्या लाभ हुआ ? बहुत लोगों में तुमने अपनी प्रतिष्ठा गंवाई।" २६. श्रावक और कसाई खेरवे में स्वामीजी के पास ओटो सियाल अंट-संट बोला-"तुम श्रावकों को देने में भी पाप कहते हो और कसाई को देने में भी पाप कहते हो। इस दृष्टि से तुमने श्रावक और कसाई को समान गिन लिया।" ___ तब स्वामीजी बोले- "अोटोजी ! तुम्हारी मां को लोटा भर कर सजीव पानी पिलाने से क्या होता हैं !" तब वह बोला --"पाप होता है ?" . तब स्वामीजी फिर बोले-"वेश्या को लोटा भर कर सजीव पानी पिलाने से क्या १. "भिक्खु दृष्टांत' मूल राजस्थानी विभाग में 'कसाई' के स्थान पर भूल से 'वेश्या' मुद्रित हो गया है।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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