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________________ १३० भिक्खु दृष्टांत पुण्य तो है न ?" तब वह बोला-"हम क्या जाने ? हम तो लिखा हुमा पढ़ते हैं। हमने आगरा का पानी पिया है, हमने दिल्ली का पानी पिया है।" तब स्वामीजी बोले-"दिल्ली और आगरा में तो गायें कटती हैं । इसमें (दिल्ली और बागरा का पानी पिया, उसमें) कौन सी विशेषता हुई ? सूत्र पढ़े हो, तो बतलाओ।" ___ इतने में लंका गच्छ का रतनजी यति आया। उसने यह बात सुनी और तिलोकजी को टोकते हुए बोला- "हम शिथिल हो गए हैं, तो भी अनाज के एक दाने में चार पर्याप्ति, चार प्राण मानते हैं । उसे खिलाने से पुण्य कैसे होगा? और तुम मुख-वस्त्रिका बांध कर क्यों खराब हुए, जबकि तुम एकेन्द्रिय जीव को खिलाने में पुण्य बतलाते हो?" इस प्रकार उसे निरुत्तर कर दिया, तब वह चला गया। २५. वास्तविकता कौन जानेगा? रीयां गांव में हरजीमलजी सेठ ने कपड़ा लेने की प्रार्थना की । स्वामीजी बोले "तुम साधुषों के लिए वस्त्र मोल लेकर देते हो, तो उसे हम नहीं ले सकते ।" । तब सेठ बोला--"दूसरे साधु तो लेते हैं। मैंने वस्त्र खरीद कर दिया, उसमें मुझे क्या हुमा ?" तब स्वामीजी बोले-"उन्हीं को पूछ लो।" तब सेठ बोला- .. "कहने में तो वे भी खरीद कर वस्त्र देने में पाप ही बतलाते हैं, पर उसे स्वीकार तो कर लेते हैं।" "हमारे पहनने-ओढने के वस्त्रों में से कोई वस्त्र आप लें। तब स्वामीजी बोले-"वह भी नहीं लेंगे। दूसरे साधु भी वस्त्र ले गए और भीखणजी भी वस्त्र ले गए। इसमें वास्तविकता का पता कौन लगाएगा ?" २६. यह झगड़ा हमसे नहीं निपटेगा हरजीमलजी सेठ अनुरागी हो गया, तब आचार्य रूघनाथजी का साधु उरजोजी एक लंबा कामज लेकर पढ़ने लगा। भीखणजी ने अमुक गांव में सचित्त पानी लिया, अमुक गांव में किवाड़ बन्द कर सोए, अमुक गांव में नितपिंड आहार लिया-इत्यादि अनेक दोष उस पत्र से पढ़ने लगा। तब सेठ बोला-"तुम जोधपुर जाओ। राजा के पास जा पुकार करो। यह तो बकवास है । यह झगड़ा हमसे निपटने वाला नहीं है । तुम इतने दोष बतलाते हो और भीखणजी कहेंगे - 'हमने एक भी दोष का सेवन नहीं किया।' इसकी सचाई हम कैसे जान पाएंगे ?" ___ तब उरणोजी बोला-"भीखणजी भी हमें कहते हैं, तुम्हें यह दोष लगता है, तुम्हें यह दोष लगता है।" ___तब सेठ बोला-"भीषणजी तो सूत्र के साक्ष्य से समुच्चय में (किसी का नाम लिए बिना) कहते हैं.---"साधुलों को यह काम करना नहीं है, साधुओं को यह काम करना नहीं है।" यह कह उसे निरुत्तर कर दिया।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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