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________________ १२८ भिक्खु दृष्टांत अथवा तुमने अपनी चादर किसी श्रावक को दे दी, इन दोनों में से तुम्हें किस बात का प्रायश्चित्त करना होगा ?" यदि वे चोर चादर को चुरा कर ले गया, उसका प्रायश्चित्त न बतलाये और श्रावक को चादर दी, उसका प्रायश्चित्त बतलाए, तो उनके हिसाब से ही श्रावक को चादर देना दोषपूर्ण ठहरता है ।" इसके बाद जगू गांधी ने उनको छोड़ स्वामीजी को गुरु बना लिया। १७. बहुत अप्रिय लगा संवत् १८४५ में पीपाड़ चातुर्मास में बहुत लोगों ने स्वामीजी के विचारों को स्वीकार किया। जगू गांधी ने स्वामीजी के विचारों को स्वीकार किया, वह वेषधारियों के श्रावकों को बहुत अखरा । तब लोगों ने कहा- "भीखणजी ! जगू ने आपके विचारों को स्वीकार किया, वह दूसरों को भी अखरा, किन्तु खेतसीजी लूणावत को बहुत ज्यादा अखरा । वह बहुत चिंता करता है।" तब स्वामीजी ने कहा-"कोई परदेश में मर गया, उसकी खबर आने पर चिंता तो बहुत लोग करते हैं पर लम्बी कैंचूली तो एक ही पहनती हैं'।" १८. रात छोटी और बड़ी उसी (पीपाड के) चातुर्मास में (स्वामीजी का) व्याख्यान सुन लोग बहुत राजी होते थे । कोई द्वषी कहता --"रात बहुत चली गई । सवा प्रहर या डेढ़ प्रहर।" तब स्वामीजी ने कहा ---- 'दुःख की रात बड़ी लगती है। विवाह आदि के प्रसंग पर सुख की रात छोटी लगती है । ठीक संध्या के समय पर मनुष्य मर जाता है, तो वह दुःख की रात्रि बहुत बड़ी लगती है। इसी प्रकार जिनको व्याख्यान अच्छा नहीं लगत', उन्हें रात बहुत बड़ी लगती है। १६. झांझ विवाह को या शव यात्रा की ___ उसी (पीपाड़ के) चतुर्मास में कुछ लोग व्याख्यान नहीं सुनते, दूर बैठे निंदा करते हैं । तब किसी ने कहा - "भीखणजी ! आप तो व्याख्यान देते हैं और ये निंदा करते तब स्वामीजी ने कहा--"झांझ के बजने पर कुत्ते का स्वभाव रोने का होता है, पर वह यों नहीं समझता कि यह झांझ विवाह की है या शव यात्रा की । वैसे ही ये यह नहीं समझते कि व्याख्यान में ज्ञान की बात आती है, उससे राजी होना तो कहीं रहा, प्रत्युत निंदा करते हैं। इनका निंदा करने का स्वभाव है, इसलिए इन्हें उलटी बात सूझती है।" २०. जैसा गुड़ वैसा मिठास उस पीपाड़ में एक गेवीराम नाम का चारण 'भक्त' था। लोगों में पूजा जाता था। वह अन्य भक्तों को लपसी खिलाता था। उसे लोगों ने बहकाया-"तुम भक्तों को लपसी खिलाते हो, उसमें भीखणजी पाप कहते हैं।" तब वह भक्त गेवीराम हाथ में घोटा ले, धुंधरु बजाता हुआ, स्वामीजी के पास १. स्त्री विधवा होने पर लम्बी कैचूली पहनती है।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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