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________________ दृष्टांत : १४-१६ तब स्वामीजी ने कहा" भले ही निकाले", कुछ एक वे अवगुण "निकाल" रहे हैं, कुछ - एक मैं " निकाल" रहा हूं। मुझे तो अवगुण "निकालने " ही हैं । १४. 'सातो' १२७ पीपाड़ में कुछ लोगों ने मनसूबा कर पूछा - " भीखणजी ! लोकभाषा में यों कहा जाता है - "सात-सात दूंगा और एक-एक गिनूँगा ।" उसका अर्थ क्या है ?" तब स्वामीजी बोले --- "उसका अर्थ बिल्कुल सीधा है। सात सुपारी देते हैं और एक " साता " गिनते हैं ।" लोग यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए । १५. तुम्हारे लिए नरक ही बचा भीखणजी स्वामी देसूरी जा रहे थे। बीच में घाणेराव के महाजन मिले। उन्होंने पूछा - "तुम्हारा क्या नाम है ?" स्वामीजी बोले – “मेरा नाम है भीखण ।" तब वे बोले - " भीखण तेरापंथी, वे हो तुम !” तब स्वामीजी ने कहा - "हां, वही हूं ।' तब वे क्रोध के साथ बोले - " तुम्हारा मुंह दीख जाने पर आदमी नरक में जाता तब स्वामीजी ने कहा - "तुम्हारा मुंह दीखने पर ? तब वे बोले - "हमारा मुंह दीखने पर आदमी देवलोक और मोक्ष में जाता है ।” तब स्वामीजी ने कहा- "हम तो यों नहीं कहते - किसी का मुंह दीखने पर कोई स्वर्ग या नरक जाता है । परन्तु तुम्हारे कहने के हिसाब से तुम्हारा मुंह हमने देखा ; अतः मोक्ष और देवलोक में तो हम जाएंगे। और हमारा मुंह तुमने देखा है, अतः तुम्हारे कहने के अनुसार तुम्हारे हिस्से में नरक ही रहा । " १६. प्रायश्चित्त किस बात का ? सं० १८४५ के वर्ष (स्वामीजी ने) पीपाड़ में चातुर्मास किया । हस्तुजी और कस्तुरांजी का पिता था जगू गांधी । उसे चर्चा करते समय स्वामीजी की मान्यता में विश्वास पैदा हो गया । उसके बाद वेषधारी साधु ने जगू गांधी से कहा - " भीखणजी की मान्यता गलत है - किसी श्रावक को बासती' देने में भी पाप कहते हैं और किसी गृहस्थ की चादर चोर ले गया, उसमें भी पाप कहते हैं । इस प्रकार चोर और श्रावक को सरीखा गिनते ।” तब जगू गांधी ने स्वामीजी से यह बात पूछी - "यह कैसे न्याय संगत होगा ?" तब स्वामीजी ने कहा - "उनसे पूछना - "तुम्हारी चादर कोई चुरा कर ले गया १. साता-सुपारी, सिंघोड़ा खारक आदि की पांच-पांच अथवा सात-सात की संख्या, जो विवाह के समय कन्या या वर पक्ष में दी- ली जाती है । २. खादी का एक प्रकार । इस विषय में एक दोहा है—गजी मेमूंदी, बासती' 1
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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