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भिक्षु दृष्टांत
तुम्हारी दुकान नहीं छोड़ेंगे।"
तब उस बहिन ने स्वामीजी से कहा-"तुम्हें वहां रहने की मेरी आशा नहीं।" तव भिक्षु ने कहा- "चतुर्मास में भी तुम कहोगी तब हम यहां से चले जाएंगे।"
उस समय वह बहिन बोली-"मुझे तुम्हारे जैसे ही साधु कह गए हैं कि चतुर्मास शुरू होने पर वे यहां से नहीं जाएंगे । इसलिए मेरी आज्ञा नहीं।" ।
उसके मना करने के बाद आचार्य भिक्षु स्वयं गोचरी गए। उदयपुरिया बाजार में दुकान की दूसरी मंजिल की याचना की। उसके प्राप्त हो जाने पर आप स्वयं वहां बैठ गए, साधुनों को भेज उपकरण मंगवा लिए । दिन में वे उस दूसरी मंजिल पर रहते और रात को वे नीचे दुकान में व्याख्यान देते । परिषद् काफी जुट जाती । बहुत लोगों ने सम्बोधि प्राप्त की। आचार्यजी ने शय्यातर (दुकान-मालिक) से बहुत कहा"तुमने इन्हें जगह क्यों दी? ये अविनीत हैं, निलव (मिथ्या प्ररूपणा करने वाले) हैं।
तब उसने कहा--"कार्तिक पूर्णिमा तक तो मनाही नहीं करूंगा।"
कुछ दिनों बाद बहुत वर्षा हुई । स्वामीजी जिस दुकान में पहले ठहरे थे, उस दुकान का शहतीर टूट गया। सैकड़ों मन वजन नीचे गिरा । इस बात को सुन स्वामीजी ने कहा- 'जो हमें दुकान छुड़ाने में रहे, उन पर छद्मस्थ स्वभाव के कारण आक्रोश की लहर आने का प्रसंग था । पर उन्होंने हमारा उपकार ही किया । (यदि हम वहां रहते तो आज क्या होता ?)"
ऐसे थे स्वामीजो क्षमाशील ।
३. अच्छा या बुरा? पीपाड़ में आचार्य रुघनाथजी के शिष्य जीवणजी ने आचार्य भिक्षु से कहा"साधु आहार करता है, वह 'अवत' और 'प्रमाद, है।
तब स्वामीजी ने कहा-"जो काम भगवान की आज्ञा में है, वह अच्छा है।" पर जीवणजी ने यह बात मानी नहीं । फिर स्वामीजी ने पूछा-“साधु आहार करता है वह काम अच्छा है या बुरा ?"
जीवणजी ने कहा- 'साधु आहार करता है, वह बुरा काम है; त्याग करता है, वह अच्छा काम है।" ___ शौच आदि के लिए जाते-आते समय रास्ते में मिलते, तब स्वामीजी पूछते"जीवणजी ! बुरा काम करके आए हो या जाकर करना है ?"
इस प्रकार बार-बार पूछने से जीवणजी सकपका गए और बोले-'भीखणजी ! साधु आहार करता है, वह अच्छा ही काम है।"
४. बिना लाभ का आरम्भ कंटालिया में भीखणजी स्वामी का मित्र था, नाम था गुलोजी गादिया । उससे स्वामीजी ने पूछा-गुला ! तुमने खेती की है ? ।
"हां, स्वामीनाथ ! की है।" स्वामीजी ने पूछा-"उपज कितनी हुई और खर्च कितना लगा? गुलजी बोले- "स्वामीनाथ ! दस रुपये लगे हैं। कुछ हल जोतने के भाड़े के,