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________________ १. बात करामात बूंदी में सवाईराम ओस्तवाल से चर्चा करते समय भिक्षु ने कहा- "गाय और भैंस के मुंह के आगे अधिक चारा डालने पर वे उसे इधर-उधर बिखेर देते हैं।" वह बोला-"मुझे पशु बना दिया।" वह नाराज हो गया। तब स्वामीजी ने कहा- "तुम यदि पशु हो गए, तो मेरा ज्ञान चारा हो जाएगा।" ऐसा कहने पर वह राजी हो गया। फिर उसने भिक्षु को गुरु बना लिया। ० कृष्णार्पण किसी समय वेषधारी साधुओं ने सवाईराम से कहा- "हमने तेरापंथी साधुमों को इस प्रकार उत्तर दिया, इस प्रकार उत्तर दिया, उन्हें परास्त कर दिया । तब सवाईराम बोला--''दो जनों के झगड़ा होने पर एक आदमी अपने घर को कृष्णार्पण कर देता है । दूसरा कलह करने से डरता है, अपने घर को सुरक्षा करता है। इसी प्रकार तेरापंथी साधु अपने साधुपन को सुरक्षा करता है । वह अंट-संट बोलने से भय खाता है । तुमने अपना घर कृष्णार्पण कर रखा है । तुम्हारे सामने अपने साधुपन की सुरक्षा का प्रश्न नहीं। इसलिए तुम जैसा मन में आता है, वैसा बोलते हो।" यह कह कर उसने उन वेषधारी साधुओं को निरुत्तर कर दिया। ० मूठी चुगली एक दिन चर्चा करते समय वेषधारी साधुओं ने कहा-“तुम हमें दोषी बतलाते हो । पर तुम्हारे गुरुओं को भी छोटे किवाड़ खोलने का दोष लगता है। तब सवाईराम ने कहा-"किसी राजा का एक मंत्री राजस्व का गबन नहीं करता । दूसरा मंत्री उससे द्वेष रखता था, इसलिए उसने उसकी शिकायत की-"यह राजस्व का गबन करता है।" राजा ने दानों को इकट्ठा कर पूछा, तब चुगलखोर मंत्री ने कहा-"इसने बच्चों को सरकारी पन्ने, स्याही और लेखनी दी है।" तब उस मंत्री ने कहा-“मैंने बच्चों को पन्ने, स्याही और लेखनी दी है, वे उन्हें पढ़ाने के लिए दी हैं । वे शिक्षित होने पर सरकारी सेवा में ही लगेंगे।" यह सुन राजा प्रसन्न हो गया। चुगलखोर मंत्री लज्जित हो गया। __ जैसे चुगलखोर मंत्री ने झूठी चुगली की और झूठा दोष बतलाया , वैसे तुम भी। छोटा किंवाड़ खोलने का दोष बतलाते हो, इसलिए तुम भी झूठे हो।" ____२. उपकार ही किया पाली में भीखणजी स्वामी आज्ञा ले एक दुकान में ठहरे । एक आचार्य ने उस दुकान वाले के घर जाकर उसकी पत्नी से कहा- "ये कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा तक १. माचार्य भिक्षु के लिए प्रस्तुत कृति में स्वामीजी, भिक्खु, भिक्षु आदि प्रयोग किया गया है।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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