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________________ भिक्ख दृष्टांत २९७. सपूत कपूत स्वामीनाथ बोल्या-धर्म तौ दया म है। जद हिंसाधर्मी बोल्या---दया-दया स्यूं पुकारौ छौ। दया रांड पड़ी उखरली मै लौटे। जद स्वामीजी कह्यौ-दया तौ माता कही । उत्तराध्ययन अ० २४ मै आठ प्रवचन माता कही छै। तिण मै दया आय गई। जिम कोई साहकार आउखौ पूरौ कीयौ । लारै तिण री स्त्री रही। सो सपूत हुवै सो तो तिण माता रा यत्न करै अनै कपूत हुवै ते ऊंधा अवळा बोलै ।। ज्यूं दया रा धणी तो भगवान ते तो मुक्ति गया। लारे साध श्रावक सपूत ते तो दया माता रा यत्न करै । अनै थां जिसा कपूत प्रगटीया सो रांडरांड कहिनै ईज बोलावी। २९८. चोधरपणे मै खींचातांण घणी साधपणी लेई शुद्ध न पाळे अनै साधरौ नाम धरावै नाम धराय पूजावै। तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयो-एक मुसला रै पाछै दोय छाळी नाहर दोड्या। जद सुसली न्हासनै बिल मै पैस गयौ। बिल मै आगै लूकड़ी बैठी तिण पूछचौ-तू सास धमण होय न्हासनै क्यं आयो ? सुसली कुबदी ते बोल्यौ--अटवी ना जनावर भेळा होय न मोनै चोधर पणौ देवै । सो हं तो कोई लेऊं नहीं । तिण सूं न्हास नै उरहौ आयौ। जद लंकड़ी बोली--अरे ! चोधरपणा मै तो बड़ो स्वाद है। जद सुसलौ बोल्यौ-थारौ मन हुवै तौ तूं लै। म्हारै तो कोई चाहीजै नहीं । जद लूकड़ी चौधरपणी लेवा बारै नीकली। ____ जद दोनूं छाली नाहर उभा हा । सो दोन कान पकड़ लिया । सद लोही झरती पाछी आई। जद सुसलै पूछयौ-पाछी क्यूं आई। तब लकड़ी बोली-चोधरपणे मै खांचातांण घणी सो कान तूट गया - तिण सूं पाछी आइ । ज्यूं साधपणौ लेई चोखो न पाळे दोष लगावै प्राछित न अन साध रौ नाम धरावै । लोकां मै पूजावै ते इहलोक परलोक मै लूकड़ी ज्यूं खुराब है । नरक-निगोद मै गोता खावै । २९९. धसका पड़े . किण हि कह्यौ-भीखणजी ! जिहां थे जावौ तिहां लोकां रै धसका पड़े। जद स्वामीजी–बोल्या-गारङ आवै गाम मै ते कहै डाकणियां ने
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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