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________________ ११३ दृष्टांत २९६ २९६. आप 'जी' क्यूं कहवो ? किण हि कह्यौ-टोळावाळा नै वंदणा कीयां उवे कहै—दया पालौ' । केई पाछौ खमावै । अनै आप 'जी' कहौ सो कारण कांई ? जद स्वामीजी बोल्या-नाथां नै कहै-आदेश । जद उवे कहै आदि पुरुष कं । पोते आदेश भैलै नहीं। पोता मै गुण नहीं तिणसूं । आदेश कियौ ते आदि पुरुष कू भलायो । गुसांइ नै कहै नमो नारायण । जद ते बोल्या–नारायण । इणरौ मुदौ ओ म्हां में करामात कोई नहीं है । नमस्कार नारायण कू करो। वैष्णु ने कहै राम-राम जद उवे कहै रामजी। उणां पिण रामजी नै भलायौ । पोते झेल्यौ नहीं । फकीर नै कहै सांइ साहिब । जद ऊ कहै साहिब । उण पिण साहिब नै भळायौ। जती नै कहै गुरांजी बंदनां । जद उवे कहै-'धर्म लाभ' । धर्म करो तो लाभ हुसी । म्हारै भरोसै रहिजो मती। भेषधारी नै कहै खमाउं स्वामी, वांदूं स्वामी। उवे कहै दया पाळी । दया पाल्यां निहाल हुसौ पिण म्हांने वांद्यां कोई तिरौ नहीं । इण रौ मुदौ यो है। ए पिण वंदणा झेलै नहीं। घर में माल विना हंडी सीकारणी आवै नहीं। अनै साधां ने वंदना करै। जद उवे कहै-'जी' थांरी वंदना म्हे सतकारी थाने वंदणा रौ धर्म होय चूको। कोई कहै-'जी' कहिंणो कठे चाल्यो है। तिण रौ उत्तर-रायप्रसेणी मै सूरीयाभ वंदना कीधी जद भगवान छ बोल कह्या। तिण मै 'जीयमेयं सूरियाभा !' एवंदना करौ ते थारौ जीत आचार है इम कह्यौ। कोई कहै 'जीय' शब्द सूत्र मै है, थे 'जी' एक अक्षर ईज किम कहो छौ। तेह नौ उत्तर-ए 'जीय' शब्द नौ एक अक्षर 'जी' ते देश है। ते देश कह्या दोष नहीं । सूत्र मै कठक तौ वचन रौ पाठ वयण आवै अनें कठक 'वय' आवै । इहां पिण देश आयौ । तथा धर्मास्तिकाय नै कठक तो धम्मत्थिकाए एहवी पाठ । कठक 'धम्मा धम्मे आकासे' । ____ इहां पिण देश कह्यो-तिम 'जीय' ए पाठ नौ देश 'जी' इम कहिवे दोष नहीं।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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