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________________ १०७ दृष्टांत : २८४-२८६ गावै है। जद स्वामीजी बोल्या-वांदणा तौ बगडै ज्यांरा गवीजै है। शुद्ध रीत प्रमाणे चालै ज्यांरा वांदणा कोई गवीजै नहीं। २८४. घर तो लूट लियौ नै माथै वले डंड पीपार मै भीखणजी स्वामी गाथा कही अचित वस्त नै मोल लरावै। सुमति गुप्त हुवै खंड जी। महावत तो पाचूंइ भागे। चौमासी रौ दण्ड जो साध म जाणौ इण चलगत सं । आचार की चौपाई, ढाल १ की पांचवीं गाथा । आ गाथा सुणनै मौजीरामजी बौहरौ बोल्यौ-अरे जसू उरहौ आव रे ! अरे जसू उरहौ आव रे । घर तौ लूट लीयौ ने माथै वले डंड करै । ज्यू भीखणजी महाव्रत तो पांचूई परहा भागा कहै । अनै वले चौमासी रौ दंड कहै छ। जद स्वामीजी बोल्या-पांच महाव्रत भागा पछै चौमासी रौ दंड न कह्यौ है । इहां तौ इम कह्यौ-महाव्रत पांच भागै पिण कतरा भागै ? चौमासी रो दंड आवै जितरा भागै इम कही समझाया। २८५. वर्तमान काळे मून केई कहै सावद्यदांन मै भगवान मंन कही है सो वर्तमान काळ विना पिण मन राखणी। पून्य पाप न कहिणौ। तिण ऊपर स्वामीजी दष्टंत दीयौ-तीन जणां रै इसी सरधा । एक जणौ सावद्यदान मै पुन्य सरधै । एक एक जणौ सावद्यदान मै मिश्र सरधै । एक जणौ सावद्यदान मै पाप सरधै । यां तीनं जणां अभिग्रह कियौ आ संका मिटै तौ घर मै रहिवा रा त्याग । अबे ए संका काढवा दरबार मै तौ जाए नहीं । अतो संका काढवा साधां कनै ईज आवै । हिवै साधां ने पूछयां साधु कहै म्हारै मन है । तो त्यांरी संका किम मिटै । इण लेखै वर्तमान काळे मून । सुयगडांङ्ग श्रु० १ अ० ११ तथा श्रु० २ अ० ५ अर्थ मै मून कही । अनै उपदेश में भगवती श० ८ उ०.६ भगवान गौतम ने कह्यौ-तथारूप असंजती नै सचित्त अचित्त सूझती दीयाएकंत पाप इण-न्याय उपदेश मै छ जिसा फल बताय समझाय साधपणौ परहौ देवै । २८६. सामायक नै धको देई पाई है केइ कहै-साधु सामायक पड़ावै नहीं तौ पाड़णी सीखावै क्यूं ?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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