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________________ भिक्खु दृष्टांत मिटयौ । ज्यं रोगादिक ऊपनां सैणौ जाणे बंध्या कर्म भोगव्यां टंटौ मिटयो । यूं जांणनै विलाप न करै। २७९. वरतारौ समदृष्टी देवता रौ स्वामीनाथ बखांण मै भैरूं शीतला नै निषेधै। जद हेमजी स्वामी बोल्या-आप देवता नै निषेधौ सो दोष करैला। जद स्वामीजी बोल्या-वरतारौ समदृष्टी देवता रौ है सो फोड़ा पाड़े तौ समदृष्टी इंद्र वज्र री देवै तिण सूं डरता साधां नै दुख न देव। २८०. इसौ साध रौ मारग स्वामोजो बोल्या-मूंओ मनुष्य काम आवै तौ साधु संसार लेखै गृहस्थ रै काम आवै । साधु कनै कोई आयौ । पांच रुपीया भूल गयौ। दूजौ ले गयौ । साधु जांण इणरा रुपीया है । अनै ऊ ले गयौ, आय नै पूछ-म्हारारुपीया अठे था सो कुण ले गयौ ? तौ साधु बतावै नहीं । एक धर्म सुणावा रौ सींजारौ है । बाकी सावध कामां रै लेखै साधु गृहस्थ रै काम आवै नहीं, इसौ साध रौ मारग है। २८१. तिण मै दोष नहीं भोखणजी स्वामी ग्रहस्थ री थकी पाड़िहारी सूई कतरणी छुरी रात्रि एक तथा घणा दिना रात्रि राखता । ___ जद भेषधारी बोल्या-साध नै सूई रात्रि राखणी नहीं । छुरी कतरणी पिण रात्रि राखणी नहीं। जद स्वामीजी बोल्या-बाजोट मै लोह रा खीला है । तथा शंख पत्थर पत्थर ना ओरीया पिण पाड़िहारा रात्रि रहै छै । तथा लोह रा हमांमदस्ता आदि पिण पाडिहारा रात्रि ग्रहस्थ रा थका रहै, तिण मै दोष नहीं। तौ सूई कतरणी छुरी ए पिण गृहस्थ रा थका पाड़िहारा रात्रि रहै, तिणमै दोष नहीं। २८२. संथारौ करणौ भेषधारी बोल्या-सूई भागै तो तेला रौ प्राछित आवै । जद स्वामीजी बोल्या-थारै लेखै बाजोट भागै तौ संथारौ करणौ । २८३. वांदणा बगड़े ज्यारा गवीज भेषधारी बोल्या-भीखणजी मै आचार नी जोड़ा गावै है सो बांदणां
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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