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________________ १०० दृष्ट जद आर्या बोली - स्वामीनाथ ! मन में आई तो खरी | जद स्वामीजी और साध साधव्यां नै आरा रै जै दिन जाणौ वरज arat | आचार्य नै साध - साध्वी त्यांरी वरजणा न कीधी । २६०. ग्रहस्थ र भरोसे रहिणो नहीं संवत १८५७ स्वामीजी पुर चौमासौ कीधो । सो फौजवाळा आवता जाने स्वामीजी विहार करवा लागा । जद भाया बोल्या - आप विहार क्यूं करौ । जद स्वामीजी बोल्या- आगे अठे टौळावाळां चोमासौ कीधौ । फौज राजोग सूं गाम रा लोक कई परहा गया । पिण टोळावाळा बोल्या - म्हे तो चौमासा मै बिहार न करां । इसी अब सूं विहार न कधौ । पछे फौज आई टोळावाळा नागोरयां री गुवारी मै जाय रह्या । त्यांनें पकड़ने को माल बतावो । मरचां री धूई दीधी । मरचां रौ तोबड़ौ मूंहढे बांध्यो । परीषह घणौ दीधौ । तिण कारण विहार करण रा भाव है । रहिवा रा भाव नहीं । जद भाया बोल्या - महाराज ! आप विहार मत करो। म्हे आपनें आछी तरै लेइ जावसां । आपनै मेलने जावां नहीं | जद स्वामीजी सुसता रह्या । पछे फोज रौ हळबळी पड़यौ जद भाया तो रात्रि रा कानी कानी न्हास गया । प्रभाते स्वामीजी पिण विहार करने गुरला पधारया । केई भाया पिण गुरलां आया । त्यांने स्वामीजी कह्यो - थें कहता हूंता म्हे आपनै लेइ जासां पिण थे तो न्हास नै उरहा आया | जद भाया बोल्या - म्हे मगरी ऊपर ऊभा देखता था । उवे स्वामीजी पधारै, उवे स्वामीजी पधारै । जद स्वामीजी बोल्या - अळगा ऊभा देख्यां कांई हुवै । थे कहता था साथै रहिसां पण साथै तौ रह्या नहीं । सो ग्रहस्थ रौ कांइ भरोसौ । ग्रहस्थ र भरोसे रहिणौ नहीं । २६१. हूं मार्ग जाणूं हूं बली सूं विहार करने स्वामीजी चेलावास पधारे जद मार्ग पूछवा लागा | जद जैचंदजी श्रावक बोल्यौ - स्वामीनाथ ! मार्ग तौ हू जाण छू सुखे सुखे पधारौ । आगे नीलां में ले जाय न्हांख्या । मार्ग चोखो लाधौ नहीं । जद स्वामीजी जैचंदजी ने घणौ निषेध्यो- तूं कहितो थो नी-हूं मार्ग जांणूं छं । जद जैचंदजी बोल्यो - हंती मार्ग चूक गयौ । स्वामीजी बोल्या - ग्रहस्थ रे भरोसे रहिणौ नहीं ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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