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________________ दृष्टांत : २५७-२५९ पूछ्यौ -छह प्रज्या दस प्राण जीव के अजीव ? जद कोई तो जीव कहै । कोई अजीव कहै । इम आपस मै तांण घणी करवा लागा । पछै स्वामीजी नै आयने पूछा कीधी - महाराज ! छह प्रज्या दस प्रांण जीव कै अजीव ? जद स्वामीजी बौल्या - जिण चरचा में भर्म हुवै ते चरचा करणी ज नहीं और ही घणी चरचा है । इम कही समझाय दीया । तांण मेट दीधी । २५७ संसार ₹ मोह को ओळखांण ९९ संसार नौ मोह ओळखावा स्वामीजी दृष्टांत दौयौ । कोइ परण्यां पछै बाल अवस्था मै आउषौ पूरी कर गयौ । जद लौक मै घणौ भयंकार मच्यौ । लोक हाय-हाय करता कहै - बापरी छोहरी रौ कांइ घाट हुसी । बापरी १२ वर्सरी रांड हुई सो दिन किण रीत सूं काटसी । इम विलाप करै । स्वामीजी बोल्या - लोक तौ जांण ए दया करें है पिण तो उणरा कांम-भोग बांछे है | जाणै ऊ जीव तौ रह्यो हुंतौ तौ २४ डावरा डावरी हुता । आ सुख भोगती तौ ठीक इम बांछे पिण या न जांणै आ घणा कामभोग भोगवती माठी गति मै जाती । जिणरी चिंता नहीं तथा ऊ किसी गति मै गतिका पिण चिंता नहीं । ज्ञानी पुरुष हुवै ते तौ मरण जीवण रौ हर्ष सोग न आण । २५८. संतोष आय गयौ हेमजी स्वामी घर मै छतां एक बहिन थी तिनै मामी आय मौमाळ ले गयौ । हेमजी स्वामी चिंता करवा लागा। भीखणजी स्वामी कनै आय कौ - स्वामीनाथ ! आज तौ मन उदास घणौ । बहिन री मन मै घणी आवै । असवार लारे मेलने पाछी बोलाय लेऊ, मन मै तौ इसी आवै । जद स्वामीजी बोल्या - इसा संसार नां सुख काचा । संजोग रौ विजोग पड़ जावै । शारीरिक मानसीक दुख ऊपजै जरै भगवंत मोक्ष रा सुख सास्वता स्थिर कह्या है, जठै सुखां रौ कदेइ विरहौ पड़े ईज नहीं ए स्वामीजी रा वचन सुने संतोष आय गयौ । २५९. मन में आई तौ खरी एक आय पाली में बेलो कीयो । पछे पारणा री आज्ञा मांगने आरा वाळारा घर सूं दूज दिन पारणा करवा लापसी आणौ । स्वामीजी ने दिखाई। पूछे स्वामीजी विचारघौ ने पूछ्यौ — थे बेलौ कयौ सो इण लापसी रे वास्ते ईज न कीधी है ? साच बोल ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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