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________________ दृष्टांत : २५१-२५३ ९७ 1 जाऔ तो पिण जांण्यौ पांनै पड्यौ सोही खरी । जाटणी नै आधो घृत पिण देणौ ठहराय दियौ । तिम भेषधारी पिण सामग्री में लाडू दरावै ते सर्व न हिरा कांयक छोहरा-छोहरी पिण खाय जावै । तो पिण देखे पांने पड़ो सोही खरौ । इम आपरै मुतळब ए रीत ठहराइ है । २५१. अन्यायी ने पाधरौ करें न्याय री सीख न मांनै अनै अजोगाई अन्याय करै, तिनै पाधरौ करवा ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयो । एक साहुकार री हवेली मुंहढै रावळीयां तमास मांड्यौ | जद साहूकार वरज्यौ - इण ठांम तमासौ मत करो । लुगायां बहू-बेटी सुणे थे मूंहढा सूं फीटा बोलौ । ते कारण म्हारी हवेली रै मूंहदै तमासौ मत करो । इम समजाया पिण रावळीयां मान्य नहीं । तमासौ मांड्यौ । लोक ढणा भेळा हुआ । राबळीयां तांन कर रह्या । जद साहुकार हवेली ऊपर नगारां री जोड़ी चढ़ाय छोहरा ने कह्यौ - नगारा बजावौ । जद छोहरा नगारा बजावा लागा | जद रामत मै भंग पड़यौ । लोक बिखर गया । रावळीयां रै हाथे दान पिण न आयौ नै भूंड़ा पिण दीठा । ज्यूं कोई न्याय री सीख न माने अन्याय करै जद बुद्धिवंत बुद्धि कर कष्ट करै । कळा चतुराई कर अन्याई नै पाधरौ करै । २५२. हूं पिण मनुषां नै भेळा करू साधुखा दे | तहां परषदा मोकळी देखने उपगार मोकळों देखने जद भेषधारी तथा भेषधारयां रा श्रावक साधां री निंद्या करें, लोकां नें भेळा करै, तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टांत दीयौ - किण ही साहूकार र हाटे गरा घणा । भीड़ घणी देखने पड़ोसी देवाल्यौ तिण नै गमै नहीं । जाण्या इण इतरी भीड़ तो हूं पण मनुषांने भेळा करू । इम विचार कपड़ा न्हांख नागी हुऔ । नाचवा लागौ । मनुष्य तमासौ देखवा घणा भेळा हुआ । जद औ मन मै राजी हुऔ । ज्यूं साधां कनै परषदा देखने भेषधारी तथा त्यांरा श्रावकां नै गमै नहीं जद ते पिण कदाग्रह करें। मनुष भेळा करै । २५३. भगवान रौ समरण कर संवत १८५५ पाली चौमासै खेतसीजी स्वामी रै कारण ऊपनौ रात्रि दिशां रौ उलटी रौ । जद स्वामीजी हेमजी स्वामी न जगायनै खेतसीजी स्वामी रस्ते पड़धा सो आप खांच पकड़ने ले आया । स्वामीजी बोल्या-संसार नीं माया काची । खेतसीजी सरीषौ यूं होय
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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