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________________ दृष्टांत : २११-२१४ थे हिंस्या मै धर्म कहौ सो थारे लेखै कुशील मै पिण धर्म ठहर्यो। हिंसा बिनां धर्म नहीं तौ कुशील बिना पिण धर्म नहीं थारे लेखै। इम कह्यां कष्ट थयो । पाछौ जाब देवा असमर्थ । २११. है रे कोई वैरो ? कोई नै बेरी न करणों । तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टत दीयौ है रे कोई बेरी ? जद संसार मै तौ कहै-दै नी उधारो । अनै धर्म लेखै है रे कोई बैरी ? तो कहै-पूछै नी करली चरचा। करली चरचा पूछ्यां जाब न आवै जद आफे ई बेरी हुवै। है रे कोइ बेरी? तो कहै-काढ नी खंचणौ । खंचणौ काढ्या आगल में दोहरी लागै जद क्रोध मै आय नै आफे ई बेरी हुवै । २१२. सूता-सूता करवा रौ ठिकाणो . भीखणजी स्वामी नै किणही कह्यौ-आप तौ पुखता हो । वर्सी में घणा हो सो पडिकमणौ बैठा इज करौ । इतरी खेद क्यां नै करौ। ___ जद स्वामीजी बोल्या-म्हे जो पडिकमणी बैठा-बैठा करां तो लारला सूता-सूता करबा रौ ठिकाणो है। २१३. महात्मा धर्म पुर माहै स्वामीजी फरमायो-दस प्रकारे श्रमण धर्म । जद जैचंद वीरांणी बोल्यो-महाराज ! दश प्रकारै यति धर्म। जद स्वामीजी फरमायौ-भलाइ महात्मा धर्म कहो नीं। __ २१४. नीत लारै बरकत कोई साध बार-बार उपयोग चूक, पिण नीत मै फरक नहीं तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टत दीयो-धांन रौ कुणको पङ्यौ देखनै किणहि साध नै गुरां कह्यौ–ओ धान रौ कुणको पङ्यो है सो पग दीज्यो मती। जद तिण कह्यौ-स्वामीनाथ ! कोइ देवू नीं। थोड़ी बार थी फिरतोफिरतौ आयनै पग दे दीधौ। जद गुरु बोल्या-थांने इण ऊपर पग देणौ वरज्यो थो नी ?जद ऊ साध बोल्यौ-स्वामीनाथ ! उपयोग चूक गयौ। जब दूजी बेला फेर फिरतांफिरतां पग दे घाल्यौ । वलि गुरां निषेध्यो, आगै थांने वरज्यो थो नी। जद वले बोल्यो-महाराज ! उपयोग चूक गयो।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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