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________________ ७७ दृष्टांत : १९६-१९८ रह्या तो पिण स्वामीजी उणांरी गिणत राखी नहीं। इसा साहसिक पुरुष एकांत न्याय रा अर्थी। - १९६. सामजी और रामजी सांमजी रामजी बंदी रा वासी। श्रावगी जाति रा बैद। दोन भाई वेला रा । उणीयारौ सूरत एक सरीखी दिसै । केलवे दिख्या लेवा आया। तिहां सांमजी दिख्या लीधी सं० १८३८ रे वर्से। पछै थोड़ा दिनां पछै नाथजीदुवारा मै घणां वैराग सं घणां महोछव सूं रंगूजी नै खेतसीजी स्वामी एक दिन दिख्या लीधी। जिन मारग रौ उद्योत घणो थयो। पछे थोड़ा दिनां सू रामजी स्वामी दीक्षा लीधी। खेतसीजी स्वामी सं सामजी तौ बड़ा अनै रामजी छोटा । केतले एक काळे सांम राम रौ टोळी कीधौ । न्यारा विचरी नै स्वामीजी रा दर्शण करवा विहार करने आवै। जद खेतसीजी स्वामी सामजी रै भोळे रामजी नें बंदणा करै एक सरीखौ उणियारौ तिण सूं। जद ते कहे-हूं रामजी छु, सांमजी तौ उवै छै । इण मुजब घणीं वार काम पड्यो। जद स्वामीजी बुद्धी सं कह्यौ-रांमजी थे पहिला खेतसीजी ने बंदनां परही करो, जद खेतसीजी जाण लेसी लारै बाकी रह्या जिकै सामजी छै। . इसी बुद्धी स्वामीजी री। १९७. जे ठंडी रोटो छौड़े ते लाड़ छोड़ दै कोटावाळा दोलतरामजी रे टोळे रा च्यार साध स्वामीजी भेळा आया । वधमांनजी (१) बड़ो रूपजी (२) छोटो रूपजी (३) सूरतौजी (४) तिण मै छोटो रूपजी बोल्यौ-मोनै ठंडी रोटी न भावै । जद स्वामीजी आहार नीं पाती करतां ठंडी रोटी ऊपर एक-एक लाडू मेल दीयौ । कह्यौ-जे ठंडी रोटी छोड़े ते लाडू ही छोड़ देवी। उन्हीं रोटी लेवै तिणरै लाडू न आवै। जद अनुक्रमें आप आपरी पांती उठाय लीधी। कोई नै पिण ठंडी उन्हीं बोलवा रौ काम नहीं । १९४. तड़को क्यूं ? गांम जाढण मै आसरै छव साधां सूं स्वामीजी पधार्या। गांम मै एक राजपूत रै आरौ। जिहां दोय भेषधारी आया सो आरा माही थी लापसी ले आया। पछै साधां नै पिण लोकां कह्यौ-आरा माही थी और साध
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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