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________________ 88 वरंगचरिउ दुज्जण सहाउ अंगाल जेम पयधोयउ धोयउ कलुसु' तेम। तं पिक्खिवि हउं मणिभउ करेमि पयकव्वु महण्णउ किं तरेमि। अहवा दुज्जणहं सहाउ एहु परच्छिद्दई गहणनिवद्धणेहु। जिम दुज्जणु परदोसइ गहंति तिम सज्जणु उवयारु जि वहति । अवगणइ मुयवि परगुण गहेइ अप्पणउ पहुत्तणु णउ कहेइ। मलयागिर-सण्णिह-सुयण-चित्त णियगुण ण विहंडइ कय पवित्त । सज्जणु सलहिज्जइ सयल लोइ सज्जणउ वहंतहं धम्मु होइ। सज्जण-णंदउ-धरयलि पसत्थ जिणणम्मि पवट्टउ हुय कुसत्थ। वायरणमहण्णउ पारिपत्त चिर हुयवहु कइवय जगि पसत्त" । तह कव्वरइय णाणापयार जगि धम्मु पवद्धिउ लोयसार। घत्ता- णियबुद्धि पयारि करमि सुसारिं2 कव्वुमनोहर वण्णउ। वहुदीव समुद्दहिं वेढिउ भद्दहिं जंबूदीउ रवण्णउ।।2।। 3 तहि' मज्झि परिट्ठिउ भरह खेत्तु सरि-सर गिरिवर-पुरवर विचित्तु । तहि अंतरिवसइ विणीयदेसु णं धरणी धरियउ दिव्ववेसु। धण-कण-कंचण परिपुण्ण गाम पुर–णयरइं सिव माहिराम। जहि ठामि-ठामि मुणि तउ तवंति जहि ठामि-ठामि जिणगुण भणंति। जहि गामि-गामि वरसालि छित्त कणभर पणविय णं सुयणचित्त। णिसि पहियण कय पहसिरि निवासु णउ चोरमारि आवइ विणासु। जहि इक्खु वणइ रसइं सियाइ' वरणारि व जण-मण-मोहणाइ। जहि दक्खारसु चक्खंति लोय कलयंविय सद्दु व महुरु होय । णं महिकामिणि भालयलतिलउ जणवइ सेविउ णं लच्छिणिलउ। तरुवर-फल-कुसुमइ परिमलाइ जहि विविहइं हुय वण-उववणाइ। इय रेहइ वसुमइ विसउ जित्थु णामेण कंतपुरणयरु तित्थु। तहि पंचवण्ण-माणिक्क दित्त वरपंचवण्ण-धयवड-विचित्त। तहि णिवसइ लोउ चयारिवग्गु जणसंकुल सोहइ रायमग्गु। घत्ता- सो णयरु रवण्णउ, मणहरवण्णउ, छुह० पंकिय विविहइ घरइं। णं फलिहविणिम्मिउ,सुरयणवण्णिउ कणय-कलसमंडिय"सिरई।।3।। 6. K, दुजण 7. N, K, कलुस 8. A,K,N पिखिवि 9. A, K, N दुज्जणह 10. K, हूय 11. K, पसंत्त 12. A, K,N सुसारें 13. K, 'जबू। 3. 1. K, तिहि 2 A, K,N सीव 3. K, खमि 4. K, सियाई N, दंसियाइ 5. K, चक्खेंति 6. K, त्तिलउ 7. A, K, N तहिं 8. K, वग्ग 9. K,N मगु 10. K, छुहं। 11. N, मंडियं।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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