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________________ 84 वरंगचरिउ को एक पहर तक उपयोग करता है। स्वयं ही अच्छे कर्म करने की इच्छा रखता है। गर्म करने पर आठ पहर तक रखता है। आप स्वयं सुकृत कर्म करना चाहते हो तो एक पहर तक पीने योग्य जल रखना चाहिए। गर्म होने पर आठ पहर की मर्यादा होती है, उसके ऊपर असंख्यात जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इसके अलावा इससे अधिक समय में अनंत जीवों की उत्पत्ति होती है। अतः रागरहित होकर अनछने जल का त्याग करना चाहिए। अष्ट मूलगुण-मद्य, मांस, मधु (शहद) और पांच उदुम्बर (बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर और पाकर) उक्त आठ का त्याग करके अष्टमूलगुणों का पालन करना चाहिए।' इस प्रकार श्रावक का आचार प्रतिपादन किया है जो हमारे लिए नित्य पालन करने योग्य है, साथ ही संयम को धारण करके, जीवों की रक्षा के प्रयोजनार्थ, दया धर्म का पालन करना चाहिए। अन्याय, अनीति और अभक्ष्य के त्याग सहित सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करना चाहिए, जो हमारा प्रथम लक्ष्य है। 1. वरंगचरिउ, 1/15
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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