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________________ 75 वरंगचरिउ जैनाचार्यों ने धर्म की द्वितीय परिभाषा पर भी गहनता से चिन्तन किया है। उनकी दृष्टि में व्यक्ति के साथ ही समाज भी अनुस्यूत है। अतः धर्म को सामाजिकता की सीमा में कसने के लिए उन्होंने उसे और व्यापक बनाया और कहा कि धर्म वह है, जो अहिंसामय हो, दयामूलक हो और संयमगर्भित हो। धम्मोदयाविसुद्धो,' अहिंसादिलक्षणोधर्मः, धम्मोमंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो' आदि परिभाषाओं में व्यक्ति की अपेक्षा समाज प्रमुख हो जाता है। धर्म की तृतीय परिभाषा में व्यक्ति और समाज-दोनों समाहित हो जाते हैं। उसमें सम्यकदर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय के परिपालन को धर्म माना गया है-रयणत्तयं च धम्मो जीवाणं रक्खणं धम्मो । व्यक्ति और समाज की सारी गतिविधियों का मूल्यांकन रत्नत्रय की परिधि में हो जाता है। जीवन की यथार्थ व्याख्या और लक्ष्य प्रतिष्ठा इसी में संघटित हो जाती है। राजा धर्मसेन अपने परिजन सहित गणधर वरदत्त केवली से धर्म का स्वरूप पूछते हैं पुच्छइ महिवइ भत्ति कयायर, धम्मसरूप कहहि गुणसायर। (1/10) नृप के वचनों को सुनकर मुनिराज कहते हैं-श्रेष्ठ धर्म वह है, जो सिद्धगति (मोक्ष) को ले जाने वाला है, जो भवसागर (संसार) से तारने वाला है, प्रशम धारण करने से शुभगति का बंध होता है, चारों गतियों के दुःखों के बंधनों से मुक्त करने वाला है, ऐसा वह धर्म सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय रूप करने योग्य है अक्खइ परमधम्मु सिवगामिउ । सम्मइंसणरयण करंडउ, जो भवसायर तरणतरंडउ । पढमु धरिज्जइ सुहगइ वंधणु, किज्जइ चउगइ दुक्खहं रूंधणु। सम्यकदर्शन आदि रत्नत्रय स्वरूप रत्नत्रय का आशय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र से है। इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग का कारण है। रत्नत्रय का महत्त्व-शिवमार्ग को ले जाने वाला श्रेष्ठ धर्म है। जो भवसागर को पार कराने वाला, शुभगति के बंध का कारण, चतुर्गति के दुःखों को नष्ट करने वाला, इन्द्र, प्रतीन्द्र, चन्द्र, विद्याधर, सुरेन्द्र, नर, चक्रवर्ती और बलभद्र जिस रत्नत्रय को प्रणाम करते हैं, वह रत्नत्रय श्रेष्ठ है। 4. तत्त्वार्थसूत्र 1/1, 1. बोधपाहुड-25 गाथा 2. तत्त्वार्थ राजवार्तिक-6/13/5 3. दसवेयालियं 1.1 सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः। 5. वरंगचरिउ, प्रथम संधि, कडवक-10
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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