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________________ 65 वरंगचरिउ पुणु चित्तसेणु भासइ सुवाय, सुरसेणहु किज्जइणेहुराय। पुणु देवसेणु तुरियउ पवुत्त, हउं अक्खमि किज्जइ अवरुवत्त। (वरंगचरिउ, 1/6) पंगुरणहीण णिद्दोसयारि, तिण्हइ वेलइ णउ लहहि वारि। जो तह संहारइ पावयम्मु, तहिसरिसउ अवरू ण कोअहम्म।। (वरंगचरिउ, 1/13) वदनक इसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती हैं, जिनमें अन्तिम दो मात्राएं प्रायः लघु होती हैं, यथा परतिय णरयजोणि दरिसावइ, परमहिला जमउरि महिलावइ । परमुद्धा सत्तउ जणु जाणइ, अजसकित्ति लोउ वक्खाणइ।। (वरंगचरिउ, 1/14) मदनावतार इसके प्रत्येक चरण में 20 मात्राएँ होती हैं, यथा सकोहा सलोहा मणे जुद्ध कामा, पपिच्छंत भइया वणाअंग सामा। वलावेवि लग्गा रणे जे वि धीरा, पपिच्छेवि सत्थाइ लग्गा अधीरा।। (वरंगचरिउ, 2/7) विलासिनीइसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं और अंत गुरु से होता है, यथाअवर वि णिय-णियपुत्ति समाणा, अट्ठवि णरवइ तित्थु पराणा। (वरंगचरिउ, 1/8) कडवक के अंत में घत्ता छन्द प्रयुक्त हुआ है, जो इस प्रकार हैराजहंस इसके प्रथम और तृतीय चरण में पन्द्रह-पन्द्रह तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में बारह-बारह मात्राएं होती हैं, यथा इक्कहि दरसाविय कुडिलगइ, अवरुवि किद्धउ सरलउ। कुडिलु पेरंतह वाहुडइ, अकुडिलु गच्छइ तरलउ।। (वरंगचरिउ, 1/19) कामिनी-हास__इसके प्रथम और तृतीय चरण में ग्यारह-ग्यारह तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में बारह-बारह मात्राएं होती हैं, यथा
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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