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________________ 52 वरंगचरिउ का नामोल्लेख किया है - यशः कीर्ति, मलयकीर्ति और गुणभद्रसूरि । इसके पश्चात् ग्रन्थ की रचना कराने वाले साधारण नामक अग्रवाल श्रावक के वंशादि का वर्णन किया है। ग्रन्थ के प्रत्येक परिच्छेद के प्रारम्भ में एक-एक संस्कृत पद्य द्वारा भगवान् शान्तिनाथ का जयघोष करते हुए साधारण के लिए श्री और कीर्ति आदि की प्रार्थना की है। कवि ने 'संतिणाह चरिउ' का रचनाकाल स्वयं ही बतलाया है विक्कमरायहु ववगय-कालइ । रिसि-वसु-सर- भुवि अकालइ । कत्तिय-पढम-पक्खि पंचमि - दिणि। हुड परिपुण्ण वि उग्गंतइ इणि । । अर्थात् इस ग्रन्थ की रचना वि.सं. 1587 कार्तिक कृष्ण पंचमी मुगल बादशाह बाबर के राज्य काल में हुई । कवि विजयसिंह कवि विजयसिंह ने अजितपुराण की प्रशस्ति में अपना परिचय दिया है। बताया है कि मेरुपुर में मेरुकीर्ति का जन्म करमसिंह राजा के यहां हुआ था, जो पद्मावती पुरवाल वंश के थे। कवि के पिता का नाम दिल्हण और माता का नाम राजमती था । कवि ने अपनी गुरु परम्परा का निर्देश नहीं किया है। अंत में पुष्पिका वाक्य से यह प्रकट है कि यह ग्रन्थ देवपाल ने लिखवाया था । कवि विजयसिंह की कविता उच्च कोटि की नहीं है । यद्यपि उनका व्यक्तित्व महत्त्वाकांक्षी का है, तो भी वे जीवन के लिए आस्था, चरित्र और विवेक को आवश्यक मानते थे। कवि ने अजितपुराण की समाप्ति वि.सं. 1505 कीर्तिक की पूर्णिमा के दिन की थी । " अतएव कवि का समय विक्रम की 16वीं सदी है । कवि ने इस ग्रन्थ की रचना महाभव्य कामराज के पुत्र पंडित देवपाल की प्रेरणा से की है। बताया है कि वणिपुर या वणिकपुर नाम के नगर में खण्डेलवाल वंश में कउडि (कौड़ी) नाम के पंडित थे। उनके पुत्र का नाम छीतु था, जो बड़े धर्मनिष्ठ और आचारवान थे। वे श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करते थे। वहीं पर लोकप्रिय पंडित खेता था । इन्हीं के पुत्र कामराज हुए। कामराज की पत्नी का नाम कमलश्री था । इनके तीन पुत्र हुए- जिनदास, रयणु और देवपाल । देवपाल ने वर्धमान का एक चैत्यालय बनवाया 1. भगवान् महावीर और उनकी आचार्य परम्परा - नेमीचन्द्र शास्त्री, आचार्य शान्तिसागर छाणी ग्रन्थमाला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.), प्रथम संस्करण, 1974, द्वि. 1992, पृ. 225 2. भगवान् महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृ. 227
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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