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________________ वरंगचरिउ V. समकालीन रचनाकार जैन साहित्य के इतिहास में 15 - 16वीं शताब्दी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस समय कथा एवं चरित विषयक काव्यों की रचना अत्यधिक मात्रा में हुई है। पं. तेजपाल के समकालीन रचनाकारों में 15वीं-16वीं शताब्दी के अपभ्रंश कवियों को लिया है, जो इस प्रकार है गुणभद्र भट्टारक भट्टारक गुणभद्र काष्ठासंघ माथुरान्वय के भट्टारक मलयकीर्ति के शिष्य और भट्टारक यश-कीर्ति के प्रशिष्य थे और मलयकीर्ति के बाद उनके पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। उनकी कथाएँ पंचायती मंदिर खजूर मस्जिद दिल्ली के शास्त्र भण्डार के गुच्छक में संग्रहीत हैं । यह प्रतिष्ठाचार्य थे और अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा इनके द्वारा सम्पन्न हुई हैं। इन्होंने अपने द्वारा जिनधर्म का उपदेश देकर जनता को धर्म में स्थिर किया और जैनधर्म के प्रचार या प्रसार में सहयोग दिया है। इनके उपदेश से अनेक ग्रन्थ भी लिखे गये हैं । यद्यपि इन्होंने अपनी रचनाओं में किसी राजा का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु अन्य सूत्रों से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनकी रचनाएँ ग्वालियर के तोमर वंशी राजा डूंगरसिंह के पुत्र कीर्तिसिंह या करणसिंह के राज्यकाल में रची गई हैं। इनका समय विक्रम की 15वीं शताब्दी का अन्तिम चरण और 16वीं शताब्दी के मध्यकाल तक जान पड़ता है । ' रचनाएँ - 1. पक्खवइ कहा, 2. णहपंचमी कहा, 3. चंदायणकहा, 4. चंदणछट्ठी कहा, 5. णरय उतारी दुद्धार कहा, 6. णिहसप्तमी कहा, 7. मउडसप्तमी कहा, 8. पुप्फंजलिवय कहा, 9. रयणत्तय विहाण कहा, 10. दहलक्खणवय कहा, 11. लद्धबिहाण कहा, 12. सोलहकारणवयविहि, 13. सुगंध दहमीकहा । 47 उक्त व्रतकथाओं में व्रत का स्वरूप उनके आचरण की विधि और उनके कुल का प्रतिपादन करते हुए व्रत की महत्ता पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। धनपाल जैन साहित्य में धनपाल नाम के कई साहित्यकारों का उल्लेख मिलता है। पं. परमानन्द शास्त्री ने धनपाल नाम के चार विद्वानों का उल्लेख किया है। ये चारों ही विद्वान् भिन्न-भिन्न काल के हैं। इनमें दो संस्कृत भाषा के विद्वान् थे और दो अपभ्रंश के प्रथम धनपाल संस्कृत के कवि राजा भोज के आश्रित थे, जिन्होंने दसवीं शताब्दी में 'तिलकमंजरी' और 'पाइयलच्छीनाममाला' ग्रंथों की रचना की थी । द्वितीय धनपाल तेरहवीं शताब्दी के हैं, जिनकी रचना "तिलकमंजरी सार" 1. जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, प्रस्तावना, पृ. 1122. पं. परमानन्द शास्त्री, धनपाल के चार विद्वान् कवि, अनेकान्त किरण 7-8, पृ. 82
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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