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________________ वरंगचरिउ अतः यह कहना अनुचित न होगा कि वर्द्धमान का वरांगचरित सरलतर होने के कारण प्रचार में आ गया होगा और स्वाध्यायी जटाचार्य के मूल वरांगचरित से दूर हो गये होंगे। 1 चौथा अपभ्रंश भाषा में रचित कवि पं. तेजपाल विरचित 'वरंगचरिउ' प्राप्त होता है, जिसमें पूर्वपरम्परा का ही अनुकरण किया है। इसमें संस्कृत वरांगचरित की विशाल कथावस्तु को संस्कृत वरांगचरित वर्धमान कवि द्वारा विरचित की तरह संक्षिप्त विषयवस्तु को पं. तेजपाल ने अपने वरंगचरिउ में चार संधियों में संजोया है, जो अभी तक अप्रकाशित था । इसके पश्चात् डॉ. ए. एन. उपाध्ये के अनुसार अन्य तीन वरांगचरित का और उल्लेख प्राप्त होता है 46 कन्नड़ वरांगचरित, लालचन्दकृत भाषा वरांगचरित एवं कमलनयनकृत भाषा वरांगचरित । कन्नड़ वरांगचरित—— इसके लेखक विष्णुवर्द्धनपुर के निवासी थे तथा ई. 1650 के लगभग हुए थे। इन्होंने अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों का स्मरण करते हुए एक वर्द्धमान यति का भी उल्लेख किया है। अतः डॉ. उपाध्ये का अनुमान ठीक ही है कि कन्नड़ वरांगचरित का आधार वर्द्धमान का संक्षिप्त वरांगचरित रहा होगा । लालचन्द्रकृत भाषा वरांगचरित' - जटाचार्य की धर्मकथा की लोकप्रियता इसी से सिद्ध हो जाती है कि जब जैनशास्त्रों के भाषा रूपान्तर का समय आया तो भाषा के विद्वान् वरांगचरित न भूल सके। इसके अन्त में लिखा है, श्री वर्द्धमान की रचना संस्कृत में होने के कारण सबकी समझ में नहीं आ सकती, अतएव उसकी भाषा करना आवश्यक था। इस कार्य को पाण्डेलालचन्द्र ने आगरा निवासी, विलाल गौत्रीय शोभाचन्द्र की सहायता से माघ शुक्ला 5 शनिवार 1827 में पूर्ण किया है। कमलनयनकृत भाषा वरांगचरित' - ग्रंथ की प्रशस्ति के अनुसार यह कृति भी वर्द्धमान के संस्कृत काव्य का भाषान्तर मात्र है। इसे मैनपुरी निवासी श्री कमलनयन नागरवार ने संवत् 1872 में समाप्त किया था। लेखक के पितामह श्री साहौ नन्दूरामजी थे तथा पिता हरचन्ददास वैद्य थे। ये यदुवंशी बढेला थे, इनका गोत्र काश्यप था । लेखक ने अपने बड़े भाई क्षितिपति का भी उल्लेख किया है। 1. वरांगचरित, जटासिंह नंदी, सम्पा. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, भारतवर्षीय दिगम्बर जन संघ चौरासी मथुरा, 1953, प्रस्तावना, पृ. 34 2. कर्नाटक कविचरित, आ. 2, पृ. 417 3. हरसुख जैन पुस्तकालय सं. 1905 में लिखी गयी हस्तलिखित प्रति / अनेकान्त, 58 वर्ष, किरण - 2 4. (क) श्री कासप्रसाद अलीगंज (एतर, उत्तरप्रदेश) की हस्तलिखित प्रति । (ख) वरांगचरित, जटासिंह नंदी, सम्पा. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, प्रस्तावना, पृ. 34
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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