SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वरंगचरिउ ____ इनका रचनाकाल माघ शुक्ल पक्ष दशमी वि.सं. 1076 है।' कवि के पिता देवदत्त भी कवि थे, जिन्होंने पद्धडियाबन्ध में 'वरांगचरित' नामक काव्य की रचना की थी। आपकी एकमात्र कृति 'जम्बूस्वामिचरिउ' है, जिसमें जम्बूस्वामी का चरित वर्णित है। यह 11 संधियों में विभाजित है। इसकी रचना करने में कवि को एक वर्ष का समय लगा था। पउमसिरिचरिउ-कवि धाहिल ने 'पउमसिरिचरिउ' (पद्मचरित) नामक धार्मिक काव्य की रचना की है। इनका उपनाम 'दिव्यदृष्टि' है। इनके जीवन, समय तथा जन्मस्थान के सम्बन्ध में सब कुछ अज्ञात है। ग्रन्थ की अंतिम प्रशस्ति से ये शिशुपालवध के रचयिता महाकवि माघ के वंशज सिद्ध होते हैं, जिनका समय 8वीं सदी है। यदि कवि धाहिल माघ की चौथी या पांचवीं पीढ़ी में उत्पन्न हुए हो तो इनका समय 10वीं शताब्दी होगा। 'पउमसिरिचरिउ' का हस्तलेख वि.सं. 1191 का प्राप्त हुआ है, जिसके आधार पर तथा भाषा एवं शैली की दृष्टि से धाहिल का स्थितिकाल 10वीं सदी के ही आस-पास सिद्ध होता है। कवि ने पउमसिरिचरिउ में पद्मश्री के पूर्व जन्मों की कथा वर्णित की है। यह विकट स्थिति में भी धर्मरत दिखाई गई है। फलतः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसमें कवि ने पद्मश्री के सौन्दर्य, प्रेम-प्रसंग, परिणय, मिलन आदि का ऐहिकतापरक वर्णन किया है, साथ ही सूर्यास्त, चन्द्रोदय आदि का भी मोहक चित्र उपस्थित कर उन्हें कथा प्रसंग से सम्बद्ध कर दिया। सुदंसणचरिउ-महाकवि नयनन्दि ने धारानगरी में सुदंसणचरिउ की रचना की थी। महाकवि अपभ्रंश के प्रकाण्ड विद्वान् एवं उत्कृष्ट कोटि के कवि माने जाते हैं। कवि ने अपने गुरु का नाम माणिक्यनंदी दिया है। कवि काव्य शास्त्र में निष्णात थे, साथ ही संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के विशिष्ट विद्वान् थे। इन्होंने सुदंसणचरिउ की प्रत्येक सन्धि के अंतिम घत्ता में अपना नाम दिया है। सुदंसणचरिउ में कवि ने सुदर्शन के चरित्र का वर्णन किया है। इसका समय 11वीं शताब्दी है एवं एक अन्य रचना सकलविधिविधान भी है। सिरिवालचरिउ-पं. कवि नरेसन ने सिरिवालचरिउ में चंपानगरी के राजा श्रीपाल और उनकी धर्मपत्नी मैना सुन्दरी का चरित्र-चित्रण किया है। द्वितीय रचना 'जिणरत्तिविहाण' अर्थात् 'जिनरात्रिकथा' है, जिसे वर्धमान कथा भी कहा जाता है। जिस व्रत से रात्रि में भगवान महावीर ने अविनाशी पद प्राप्त किया, इसी व्रत की कथा 'शिवरात्रि के ढंग पर रची गई। उस रात्रि में जनता को इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हुए आत्म-शोधन का प्रयत्न करना चाहिए। उक्त कृति 'सिरिवालचरिउ' का सम्पादन डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन ने किया है, जिसका 1. वरिसाण सयचउक्के सत्तरजुत्ते जिणेंदवीरस्स। णिव्वाणा उववण्णो विक्कम कालस्स उप्पत्ती।।1।। विक्कम णिव कालाउ छाहत्तर दस सएसु वरिसाणं। माहम्मि सुद्धयक्खे दसम्मी दिवसम्मि संतम्मि।।2।। (जम्बूस्वामिचरिउ, अंतिम प्रशस्ति)
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy