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________________ वरंगचरिउ 215 समुद्र प्रतिदिन जल से भर जाता है, वैसे ही मिथ्यादर्शनादि स्रोतों से आत्मा में कर्म आते हैं अथवा मन, वचन एवं काय की क्रिया योग है, वही आस्रव है। आस्रव के दो भेद-1. द्रव्यास्रव, 2. भावास्रव। .. 1. द्रव्यानव-अपने-अपने निमित्त रूप योग को प्राप्त करके आत्म-प्रदेशों में स्थित पुद्गल कर्मभाव रूप से परिणमित हो जाते हैं, उसे द्रव्यास्रव कहते हैं। अथवा ज्ञानावरणादि कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है, उसको द्रव्यास्रव कहते हैं। 2. भावानव-आत्मा के जिस परिणाम से पुद्गल द्रव्य कर्म बनकर आत्मा में आता है, उस परिणाम को भावास्रव कहते हैं। कामदेव 3/4 चौबीस तीर्थंकरों के समयों में जो अनुपम आकृति के धारक होते हैं, उन्हें कामदेव कहते हैं। ये चौबीस हैं एवं कामदेव चौथे काल में ही उत्पन्न होते हैं। कुदेव 1/10 जो राग-द्वेष आदि अठारह दोष रूपी मल से मलिन होते हैं तथा जिनकी पहचान स्त्री, गदा, त्रिशूल, खप्पर आदि से होती है, वे कुदेव कहलाते हैं। कुपत्त (कुपात्र) 1/17 ____ सम्यक्त्व, शील और व्रत से रहित जीव कुपात्र है अर्थात् जो व्रत, शील और तप से सम्पन्न है, किन्तु सम्यग्दर्शन से रहित है, वह कुपात्र है।' उपवासों से शरीर को कृश करने वाले, परिग्रह से रहित, काम, क्रोध से विहीन परन्तु मन में मिथ्यात्व भाव को धारण करते हैं, उन जीवों को कुपात्र जानना चाहिए। कुलयर (कुलकर) 3/4 प्रजा के जीवन का उपाय जानने से मनु तथा आये हुए पुरुषों को कुल की भांति इकडे रहने का उपदेश देने से कुलकर कहलाते हैं। कुलों की व्यवस्था करने में कुशल होने से भी उन्हें कुलकर कहा जाता है। प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ तिलोयपण्णति में 14 कुलकरों का उल्लेख है-1. प्रतिश्रुति, 2. सन्मति, 3. क्षेमंकर, 4. क्षेमन्धर, 5. सीमंकर, 6. सीमंधर, 7. विमलवाहन, 8. चक्षुष्मान, 9. यशस्वी, 10. अभीचन्द्र, 11. चन्द्राभ, 12. मरुदेव, 13. प्रसेनजित और 14. नाभिराय। 1. वसुनंदी श्रावकाचार, आचार्य वसुबन्दी कृत, गाथा 223 2. महापुराण, 211-212
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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