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________________ 208 वरंगचरिउ घत्ता- इय तउ वि तवंतउ, महि वि हरंतउ, अंतयालु जाणेप्पिणु"। दिढ2 जोउ धरेप्पिणु", अणसणु लेप्पिणु". सुक्कझाणु काएप्पिणु।।२२।। 23 पंडिय-पंडिय-मरणु करेप्पिणु' चउगइ दुक्खह पाणि उदेप्पिणु। गउ सव्वत्थसिद्धि सो मुणिवरु तत्थ वियाउ भुंजि होइवि णरु । महि परिपालिवि पुणु तउ लेप्पिणु' णिच्छयरयणत्तय' वि धरेप्पिणु । पुणु सिवउरि जाएसइ सो मुणि सायरविद्धि सिट्ठि पुणु मंतिय चत्तारिवि सग्गहो गय भत्तिय। जिणपय वरतण तिय वि मरेप्पिणु अंतयालि जिणवरु समरेप्पिणु। णियधम्मांणुसारि गइ पाविय जारिसु तारिसु लद्धिय भाविय। अण्णु वि जो जिणसासण भत्तउ सुहगइ पावइ सो मल चत्तउ। जो समत्तसीलु वय धाराई' सो भयसायर अप्पउ तारइ। सय–पमाय-संवच्छर खीणइ पुणु सत्तग्गलसउ वोलीणइ। वइसाहहो किण्ह वि सत्तमदिणि किउ परिपुण्णउ जो सुह महुर कुणि। विउलकित्ति मुणिवरहु पसायं रइयउ जिणभत्तिय अणुरायं। मूलसंघ गुणगण परियरियउ रयणकित्ति हूयउ आयरियउ। भुवणकित्ती तहो सीसु वि जायउ खमदमवंतु वि मुणि विक्खायउ। तसु पट्टि संपय वि णिविहिट्ठउ धम्मकित्ति मुणिवरु वि गरिट्ठउ। तहो गुर होइ° विमलगुण धारउ मुणिसुविसालकित्ति तवसारउ। सो अम्हह गुरु जहि महु दिण्णिय पाइय करणबुद्धि मइ गिण्हिय। सरपियवासउपुर सुपसिद्धउ धण-कण-कंचण-रिद्धि समिद्धउ । वरसावडह वंसु गरुयारउ जाल्हउ णाम साहु वणिसारउ। तासु पुत्तु सूजउ दयवंतउ जिणधम्माणुरत्त सोहंतउ। तासु पुत्त जहि कुल उद्धरियउ रणमलणामु मुणहु गुण भरियउ। तहो लहुयउ वल्लालु वि हुंतउ जिण कल्लाणइ जत्त कुणंतउ। पुणु तह लहुयउ ईसरु जायउ संपइ अच्छइ दयगुण रायउ। 11. A, K, N, जाणेपिणु 12. N, दृढ 13. A, K,N, धरेपिणु 14. A, K,N, लेप्पिणु 23. 1. A,N, करेपिणु 2. A,K,N, देपिणु 3. A,K,N, लेपिणु 4 A, N, रयण, A, रय 5. A,K, N, धरेपिणु 6. A,K,N, मरेपिणु 7.N, पालइ 8.N, हाइ 9. A,K,N, अम्हहं 10. A,K,N, वइसावडहं
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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