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________________ 194 12. 13. वरंगचरिउ जुवरायत्त सो करहु रज्जु । पद्मं हुंतइ को उव्वहइ गव्वु । भो देव सुसेणहो देहि अज्जु तायइ अक्खि तुह लेहि सव्वु घत्ता - पुणु वरतणु अक्खड़, गुज्झु ण रक्खड़, हउं ण लेमि जुवराय पउ । पर चक्किय साहमि, महि अवगाहमि, हउं भंजमि अरिरायमउ । । ११ । । 12 लहु देहु सुसेणहु रज्जु ताय । सुमणोहरु वणिसहु महि गुरुक्कु । जंतुच्च तं करि तुह कुमारु । जणणी-जणणुल्लय पयणवेवि । लिउ सत्थि पुणु विकय चारु मंतु । तहि सत्थि लइय कयणीय सुद्धि । हि जंत-जंत पुणु दिनु तेण । महि णिवडिय पासायइ वि खीणु । पुच्छिउ जरमंतिउ णिसुणि ताय । सुमणोहरु महिलु विउलधामु । णामें अणत्तपुर गिह विचित्तु । भंडणु रउद्दु दुण्णिवि जणाहं । वरगेह रइय मुणिवर णिवासु । वरतणु सहु सो जायउ कयत्थु । सहियउ, तुंगु वि गोउर मंडियउ । णिम्मिय जलवाणइ, कूवणिवाणइ, जुत्तउ अरिहि अखंडियउ । । १२ ।। 13 मा अवगण्णहि वर मज्झ वाय हउं णिवसमि पुरवरु करिवि इक्कु ता तायइ मण्णिउ वयणु सारु तहि अवसर वहु साहणु लएव' पयणिहि विद्धिउ वणिणाहु संतु ते मंति चयारिवि विउल बुद्धि चल्लिउ कुमारु पहसिय मणेण जर पट्टणु कोविवि णरविहीणु तं पिच्छिवि पट्टणु तेण राय इहु को पुरु सुण कवणा तं सुणिवि पुणु कंचुयइ वुत्तु इह हुउ मुरारि जरसेंघ याहं इय वयणइ तहि पुर कियउ वासु बल चाउरंगु सहु रहिउ तित्थु घत्ता - तहि सालु वि रइयउ, परिहा तरुवर सच्छाविय वाहियालि' किय हट्टम गमहि विउल लेवि महिवइ भवणइ कीयइ मणोज्ज हरि - करि अंतेवर सयल जुत्त 6. A, K, अवग्गहमि 1. A, लाएवि 2. A, K, N, जरसेघयाहं 1. A, वाहियाहि 2. K, कीवइ वण - उववणि वसहि खेयरालि । कय विक्कइ वत्थ जणेहि सेवि । विसिउ तहि णत्तिउ राय भोज्ज । चामीयर चंपय सरिस गत्त ।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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