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________________ 192 वरंगचरिउ णं दालिदिएण धणु लद्धउ णं रसवाइ रसायणु सिद्धउ। णं वरहंसु सिवप्पुरि पत्तउ णं हंसउ मण सरवरि रत्तउ। ता णरवइ वहु तूरह णेविणु सम्मुह चल्लिउ हरिसु धरेविणु। पत्तउ जाइवि णंदणु दिट्ठउ तूवें रइवरु लोय गरिट्ठउ। णरवइ सहु पट्टणि पइसारिउ दिण्णुः दाणु भट्टह जयकारिउ । आय कुमरु जणणिहि पयलग्गउ । तुह पसाय' मायरि दुह भग्गउ । सज्जण लोयहि तोसु पवट्ठिउ दुज्जण मुह मसिकुंचउ वट्ठिउ। पिय मायरिहि महुच्छउ कीयउ णं णव पुत्त जाउ धणु दीयउ। घरि आयउ वरंगु णिसुणेविणु' अरि भग्गउ णियसेण लएविणु। सुण्ह वि गुणदेविहि पयलग्गिय हरिसिय दरसिवि सुण्ह समग्गिय। घत्ता- ता णरवइ पुत्तहो, वरगुण जुत्तहो, सयलु वि चरिउ पपुच्छियउ। ___ सो जहि जहि हिंडिउ, सुह-दुह मंडिउ वरतणि सव्वु समक्खियउ | 190 ।। 11 इत्तहि जो आयउ देवसेणु सो सम्माणिवि पुणु वहुविहेणु। कयवासर भत्ति करेवि चारु मोक्कल्लिउ गउ णियपुर सुसारु । अण्णहि दिणि मंति' सुसेणु लेवि जह वरतणु तह संपत्त वेवि। अक्खइ सुसेणु भो णिसुणि भाय तुहु धम्मवंतु णिरु विगय माय। जं मइ अवराहु वि कियउ तुज्झु तं वंधव सयलु वि खमहि मज्झु। किं खमउ णत्थि अवराहु कोवि तुह महु गुरवंधउ कहिहि सोवि। अवराहु कवणु हउँ खमिउ सव्वु इउ वयणु सुणिवि छंडेवि गव्वु। जं चिरु विलसिउ मंत'वरेण तं सयलु वि अक्खिउ* कुमरि तेण। तं मुणिवि विक्खणु वयण सव्वु भो वंधव पइं समु कवणु भव्यु । तुह गव्वहीणु अकुडिल सहाउ तणु तेयइ णिज्जिय दिवसराउ। वंधव लइ सव्वु वि रज्जभारु लइ मज्झु लच्छि पुणु पुहइ सारु । इय वयण परोपरकरि सणेहु गउ कुमरु सुसेणु वि णियय गेहु । ता अवरहि दिणि गुणदेवि पुत्त णियतायहो अग्गइ कहइ वत्त। 2. N, दिंणु 3. A,K,N, भट्टहं 4.N, पसयइ 5. N, भग्गहउ 6. A,K,N, मुहं 7. A,K,N, सुणेपिणु 8. A, K, N, हेंडिउ 9. K, यमक्खियउ। 1. K, मंत 2. A,K,N, तहं 3. N, मंतें 4. A, अकिउ 5. K,N, गेह। 11.
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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