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________________ 184 वरंगचरिउ घत्ता- तं वयण सुणेप्पिणु', वयसुमरेप्पिणु'. वरतणु पभणइ गुणणिलउ। चोरु व सेविज्जइ, धम्ममुइज्जइ, तो पाविज्जइ जस विलउ ।।४।। जइ वाला करगहणउ किज्जइ सयल लोय पिच्छंतह' लिज्जइ। ते हउं सेवमि णिय तिय सुंदरि रइविलास भुंजमि णियमंदिरि।* अण्णु पयारि ण रइरस धुत्तिय पाणयंति सेवमि ण अजुत्तिय । इय पच्चुत्तरु पाविवि वाला तिय सहियंति पत्त सुकुमाला। णिसुणि पुत्ति एवहि करि संवरु कालंतरि होसइ सो तुह वरु। विण परणिय अवला णवि सेवइ परतिय दोसें मणि भउ वेवइ । विहि संजोउ करेसइ तेरउ हलि वयणुल्लउ मण्णहि मेरउ । इय णिसुणेवि मणोरम वुच्चइ महु वरतणु विणु किंपि ण रुच्चइ। वार-वार सा इय पलवंतिय कहव-कहव णियगेहि पहुत्तिय। इउ वइयरु णिसुणियउ परिंदे । णियपरियण पयकुवलयचंदें। इत्तहि मूल णयरि किं जायउ धम्मसेणु जहि णिव विक्खायउ। जहि सुसेणु' जुवराय वइट्ठउ करइ रज्जु जो णिय मणिइट्ठउ। ता पच्चंत णिवइ बलदुद्धरु वरतणु गउ मुणि समरधुरंधरु । आइवि तित्थु देसि सो लग्गउ अरिलग्गंतइ सहु जणु भग्गउ। जणु आइवि पुणु पत्थिव-पत्थिउ देव तुभु देसहो जणु दुत्थिउ । अरिपइ देसहो उपरि आयउ णाम पराजिउ महि विक्खायउ। इय वयणहि सुसेणु" णीसरियउ तहि जाय वि पुणु संगरु धरियउ। पुणु भज्जिवि णियणयरि पइट्ठउ चोर जेम लोयहि णवि दिट्ठउ। घत्ता- णंदण रणि भग्गउ, णिसुणि समग्गउ, धम्मसेणु पुरवहि थियउ। वरतणु सुमरंतउ, वहुगुणवंतउ, हा किं सो तुरयइ णियउ ।।५।। 6. A,K,N, सुणेपिणु 7. A, K,N, "सुमरेपिणु ___ 1.A, K, पिच्छंतहं 2. K, सुंदिरि 3. रइविलासु भुंजमि णियमंदिरि, यह पंक्ति K, प्रति में नहीं है। 4. N, घेवइ 5. N, वइरू 6. K, विखायउ 7. A,N, सुखेण 8. K, रजु 9. K, धुरधरु 10. N, दुत्थिऊ 11. A, K, N, सुखेण 12. A,K,N, तुरयई
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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