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________________ 176 वरंगचरिउ घत्ता-ता करिवि महुत्थउ तहि णिवेण कणयासणि वयसायरिउ । __णिउ वुच्चइ भणु तुहु कहु तणउ पई रिउ वलु अवहारिउ ।।२०।। 21 खंडयं-इय णिसुणिवि पहु उत्तयं, ता पच्चुत्तर वुत्तयं। हउं पई सिट्ठिहि णंदणो, किं णामु णहि णिवसुहमणो।।छ।। तं णिसुणिवि पुणु राउ पयंपइ किं अलियउ अक्खहि महु संपइ। इय सुणेवि पुणु वरतणु घोसइ सप्पुरिसु वि किं णियगुणु पोसइ। जिह' पज्जुण्ण पुत्त जम संवर णहयर केरउ हुयउ विज्जहर। अहवा अवरु जणद्दणु णवमउ णंद महर सुउ जायउ तं हउ। वणिवइ तणु रुहु किं णिव' अलियउ हरि गोवाल सिण्ण जणि धरियउ। तव्वयणाणंतरि भडु अक्खइ इक्कु वि णिउण बुद्धि पच्चक्खइ। सो उत्तमु अप्पउ ण पसंसइ इहु को णिवणंदणु विणु संसइ। एवहि णिय वयणुल्लउ किज्जइ धीय सुणंदा एयह दिज्जइ। कुमरवरंगसरिसु को माणउ ___ सुंदर हरि सुय तुव्व' समाणउ। णरचूडामणि पोरिसवंतउ इहु को उत्तमु इह संपत्तउ। इय वयणइ मणि हरिसु धरेप्पिणु दिण्णिय पुत्ति विवाहु रएप्पिणु। पुणु सुहि णिवसइ कील करंतउ णवकामिणि रइसुहु माणंतउ। जो धम्मागलु' माणउ होसइ तासु महत्तु वि सुरगुरु घोसइ। जं जं दीसइ तिहुयणि चंगउ तं तं धम्मपहाउ सुरंगउ। घत्ता- जो जिणधम्मासत्तु णरु, जीवदया वय पोसइ। पुष्कयंत जुण्णइ सरिसु, सो तेयालु हवेसइ ।।२१।। इय वरवरंगचरिए। पंडियसिरितेयपालविरइये। महाकव्वे सिरिविउलकित्तिमुणिसुप्पसाए। वरांगजयवण्णणो णाम तईउ संधी-परिच्छेउ सम्मत्तो।। संधि-3।। 21. 1. A,K,N, जिहं 2. A,K,N, पुज्जुण 3. A, K,N, वियाहर 4. N, जिंव 5. K, वुधि । 6. K, पच्चकरवई 7. N,सुव/तुव, A, K, तूव 8. A,K, इहं 9. N, धम्मगलु 10.A, K,N, सिरिपुष्पदंत
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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