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________________ 170 वरंगचरिउ पुणु वीराण वीर रणि जुज्झहि केहिवि महिणिवडिय वरसीसइ केहिवि णियडिय धरकर चरणइ केवि भिडहि किवि महियलि मुज्झहि । केहिवि पयडंतावलि भीसइ । केहिवि पत्त रणंगणि मरणइ । घत्ता- तहि अवसरि कुमरु वि वीरवइं रणमंडवि संपत्तउ | घणवारि व सरधोरणिपवरु वरसइ कोहहि रत्तउ । खंडयं- रिउवल तेण वि हंसयं, महिणिवडिय गय हंसयं । हु र पहरहि भिण्णयं, ता अवलोइवि सिण्णयं" । । १६ । । 17 णियभड महि णिवडंत पलोइवि हि आएरणंगणि धायउ रिउ सहसइं गयंद परियरियउ आइवि पत्तउ जहि वरतणु भडु कडि तोणा जुयलउ संणिहियउ' दाहिणकर असिवर तहि धारिउ कोहमाण - माया पयडंतउ भिडिय परोप्पर ते णिवणंदण पुणु णिय वारणगणु तहि जो उ कुमरिविणिय करिंदु सुपसंसिउ कोहाउर होइवि रिउ अक्खइ किं किं जलणिहि मज्जणु इंछइ कोई सरि डु अण्णाणिउ इंदसेण तायहो मुह जोइवि । णाम उदुसेणु णिव जायउ । णाम वलाह करिहि सो चडियउ । पेरंतउ णिय वारणवरघडु । वरगुण जुत्त चाउ करि गहियउ । जहि चिरु हरि - करि - णर संहारिउ | करइ जुज्झु सरगणु' अगणंतउ । यि जस कारण किद्धउ भंडण । दारणु कुमरहो उप्परि ढोयउ । भिडिवि तेण करिगणु विद्धंसिउ । जीवइंछ गरलुल्लउ भक्खइ । हउं हरि पइं कुरंगु रणु वंछइ । महु पोरि कें पण वियाणिउ । धत्ता - परकज्जि णिरत्थउ मा मरहि जाहि जाहि खलु मूढमइ । कय वय दिणम्मि सीयलु पिवहि जीवण रे रे वणिवइ । । · खंडयं - पाविय दुट्ठ दप्पिट्ठयं लज्जा रहियइ धिट्ठयं । पद्मं महु अवस जदा इयं, जणु भणिसइ वणि घाइयं । । १७ ।। 10. N, किहिवि 11. A, K, N, सिंण्णयं 17. 1. A, K, N, संण्णिहियउ 2. A, सरगणुं 3. A, K, N, परोपर 4. A, K, जम 5. A, K, N, करें दु
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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