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________________ वरंगचरिउ सम्मान करता है। व्यक्ति सोने की आशा से वणिक को प्रेरित करता है। 169 घत्ता - जो अपने पौरुष (बल) से शत्रुओं को जीतता है, तो उसे पुत्री सुनंदा अर्पित करूंगा और भी युवराज पद दूंगा एवं श्रेष्ठ वैभव उसे कल्पित करता हूँ। खंडक—इस प्रकार कह करके युद्ध क्षेत्र के लिए तत्पर होकर गया । अनेक प्रकार के कवच सहित योद्धाओं को निबद्ध जानकर तैयार हुआ । 16. युद्धभूमि में वरांग का प्रवेश फिर राजा हर्षित होकर, युद्ध की इच्छा को धारण कर अनेक वाद्ययंत्रों को बजवाता है। अप्रतिमल्ल हाथी कुमार को दिया गया, जिस पर सवार होकर समर के लिए (युद्ध) प्रस्थान करता है। बहुत से योद्धाओं के संग सहित सेना चली, बहुत से राजा एवं हाथी यहां से युद्धभूमि में जाते शोभित हो रहे थे। वरांग कुमार हाथी के ऊपर ऐसे शोभित होता है, जैसे पर्वत के शिखर (अग्रभाग) पर सूर्य शोभित है। देवसेन भूपति का क्या कहे, वह तो क्रोध रूप लाल-अग्नि समूह के समान दिखाई पड़ते हैं। सभी शत्रुबल को पीड़ित करके दग्ध कर देगा जब कुमार वरांग स्वभाव को प्राप्त करेगा । इस प्रकार से शत्रु की सेना सम्मुख आती है तो फिर कुमार और राजा उनके सामने दौड़ते हैं । दोनों सेनाएँ आमने-सामने मिलती हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा घूम रहे (चक्र) हैं, कायर समरभूमि से भागे । पश्चात् युद्धभूमि (प्रांगण) रक्तमय हो गई। जिस प्रकार दरिद्रता से पौरुष नष्ट हो जाता है अथवा दरिद्र व्यक्ति धन को छोड़कर अपनी जीविका का नाश करता है। श्रेष्ठ हाथी के साथ हाथी भिड़ते हैं और फिर घुड़सवार के साथ घुड़सवार भिड़ते हैं, रथ सवार रथ- सवार से युद्ध करते हैं। (युद्ध भूमि में युद्ध इतनी तेजी से हो रहा है।) उड़ती हुई धूल के कारण मार्ग नहीं दिखाई पड़ रहा है। पैदल सिपाही पैदल सिपाही को मारते हैं, योद्धा-योद्धा को परस्पर (एक-दूसरे) संहार कर रहे हैं, दोनों सेना में रौद्रता (क्रोध का रोष) उत्पन्न हो गयी है, दोनों सेनाओं की धूल से रणभूमि ढक गई है, घोड़े के मुंह से फेन एवं हाथी का मद गिरने लगा है, घात और रुधिर से धूल भी शांत हो गई है, फिर वीर (बहादुर) वीर से युद्ध में लड़ते हैं, कोई भिड़ता है, कोई पृथ्वी पर मूर्च्छित पड़ा है, किसी का सिर पृथ्वी पर गिरा पड़ा है, भयानक बलवान (योद्धा) पड़े हुए हैं, कैसे धड़, हाथ और चरणादि गिरे पड़े हैं। कैसे मरण को प्राप्त हुए । घत्ता - उस अवसर पर (युद्धभूमि में) कुमार ने भी रण में बलपूर्वक विजय को प्राप्त किया ।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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