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________________ 152 वरंगचरिउ पइं विणु सुण्णउ घरु पुरुरावलु पइं विणु माणसु हूयउ वावलु। पइं विरहाणल सुण्ह जलेसहि अहवा वर जि ण दिक्ख लएसहि। महु घरु होसइ गहण सरिच्छउ पई विणु महु जीविउ मा अच्छउ। घत्ता- हा कुंदुज्जल कित्ति जसु हा मण सियसमसुंदर। हा हा वरंग तुह कहि गयउ पइ विणु सव्वुअसुंदर।।५। 6 खंडयं-इय करुणा य चवंतिया, धम्मसेण णिव पत्तिया। सुयमोहें विद्दाणिया, पडिय दडत्ति वराणिया।। महि णिवडिवि गय मुच्छा पवण्ण कर-कंकण-केउरहि रवण्ण। पासहि एहि पुणु धरिय देवि हा हा पभणतिय सहिय केवि। पुणु सिंचिय पय चमराणिलेण ___ अण्णु वि मलयाइर परिमलेण। पुणु उट्ठिय चेयणभाउ पत्त पुणु पुणु रोवइ सोएण रत्त। तहि सोउ करंतह' णयर-णारि सयल वि आविय गुणदेवि वारि। आयउ अंतेउर रणकणंतु पायइ णेवर सद्दइ कुणंतु। आयउ पुरलोउ महाणु भाउ सज्जण जण वरसिक्खा सहाउ। झूरंतिय सा पिक्खिवि मणेण सुय-सुय भणंति कम्महो वसेण। तिय पुरिस पराइय जेवि जेवि धाहाविय सयल वि तेवि तेवि। जो णरु सकयत्थउ लोय होइ तहो कारणि सोउ ण करइ कोइ। पुणु सा संबोहिय पंडिएहि वरभाविय तत्तु वियाणएहि। पुणु मालइ माला सरिस वाहु णियकंतहि णेह णिवद्ध गाहु। णं सुर अच्छरगणु इत्थ पत्ति वरतणु राणिय पिय पायभत्ति। णिसुणिउ णियकंत विउउ जाउ हा विहि किं हउं सोहग्ग भाउ। हा णाह-णाह पभणंतियाइ । सोयाउर धाहावंतियाइ। हा अम्हह जोवणु गउ णिरत्यु जं लद्धिय कुरयइ इह अवत्थु । हा विहि किं पाडिउ पवि णिहाउ अम्हह सिरउवरहि हरिउ राउ। 6. 1. A, K,N, करंतहं 2.N, अम्हहं A, K, अम्म्हहं 3. A, K,N, ण्णिरत्यु ___4. A, K, N, गुरयइ 5.A, अवंत्थु 6. A,K,N, अंम्हह
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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