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________________ 132 वरंगचरिउ हउं पुणु वि तुज्झ मारण समत्थु लुट्टिवि लेसहं वणिवरह सत्थु। मुद्ध वि किराट्ट वयणेहि हणहि मई पुरइ रहंतह पुरिसु गणहि। हउं किं ण कलिउ पच्चक्खकालु चिरु कवलिय वहुमइ भूमिपालु। घत्ता-जमसहुं जुज्झं तहं को जिणइ एहु वयणु सुपसिद्धउ। सो पइं अवगण्णिवि रणु विहिउ तुहु समाणु को मुद्धउ। दुवई-कालें कवण-कवण णवि कवलिय कीडय सरि समाणउ। इत्थु ण थाहि थाहि महु अग्गइ जीवहि तो पलाणउ।। ६|| 10 हउं जि कालु पुणु ताउ महारउ महाकालु अवरु वि कलयारउ। विण्णिवि जम तुहु के जीवेसहि गच्छु जमाणणि जिउ म पवेसहि। पइ मारिवि पुणु सत्थ तुहारउ मारिवि दबु लेमि महि सारउ। अहवा जइ महु सरणागच्छहि तो जीवंतउ दहदिहि गच्छहि। इय कडुयक्खराइ जंपेविणु' वाणइ मुक्क संरासणु लेप्पिणुः । अगणिय सरधोरणि वरसंतउ णं अयालि वरसागमु पत्तउ। इय वाणहि' अगणंतउ घायल णियपोरिस बलेण णिव जायउ। काल-वाण-गण हुयउ णिरत्य उ अत्थु ण फूरइ जह किवि णत्थउ । कुमरि किरायह' बलु जज्जरियउ मग्गण मुक्क सरासणु धरियउ। थरहरंतु किवि महियलि णिवडिय किवि सरभिण्णंगइ जमि कवडिय। वणरुहिरारुण धर किं सीसइ संज्झाघणु णहयलि जिम दीसइ। भिडिवि-भिडिवि सुहडह गयजीविउ कायर भग्ग लेवि णियजीविउ। सवर संघु जुझं तह मारिउ णं मुणि कम्मवूहु संघारिउ। णियबलु पिक्खिवि पुणु सवरेसें पुणु साहारिउ वाणविसेसें। पुणु वहु सत्थहि णियसुउ घायउ तो विण जीविय चत्तु ण जायउ। मुच्छ लहिवि सुंदरु पुणु उट्ठइ भिल्लवूहु संहारइ रुट्टइ। घत्ता- कायरहं भयावणु असुहरणु कुमरकाल रणु जायउ। दोहिमि जुझं तहि परबलहि कालु समरु वि णिवायउ।। १० ।। . 9. N, अवगणिवि 10. A, थाहिं 10. 1. K, जपेविणु 2. A, K, N, लेपिणु 3. K, णं 4. N, वाणाहि 5. A,K,N, जहं 6. K,N, णिरच्छउ 7. A, किरायहं 8. K, सरसण्णु 9. K, वूह
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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