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________________ 118 1. वरंगचरिउ द्वितीय सन्धि 1 सुमइ जिणंदहो णविवि पय सम्मइ विहिय' पयासहो । हरिसुय मग्गणइ णिरत्थकय वलमोहारि विणासहो । । दुवई । । सो जिण विमलबुद्धि महु अप्पउ, केवलणाणलोयणो । कव्वसमिद्धि होउ परिपुण्णउ, भव्वणि सवण भोयणो । । छ । । इत्तहि सुंदरु भू विहरंतउ सहसा सरवरिक्क संपत्तउ । हयमलु णाणवंत मणु जेहउ । सरवर अंतरि झत्ति पइट्ठउ । ताम पाउ गहियउ दुह सीलइ । मंसासण णिमित्त तणु तासए । रु वंधिउ तिय खुंटइ' जेवहि । हा चिरभवि मई को जलिवोलिउ | सो किं गच्छइ विणु हिअ भुत्तउ । पज्जुण्ण होउ व सग्गु परायउ । वलवंतउ सुरकरिकरसमभुउ । माणभंगु गरुयउ संपत्तउ । तिय मोहें' सो दुग्गइ पडियर । फलु अणुहुंजहि धम्माहम्महो' । विच्छोयउ वंधव घर माणिणि । तो पंचाणणि रुंधिवि धरियउ । एवहि होसमि जीविय चत्तए । विहि णसण पयज्ज किय । पंचणमोयारइ गहिय ।। तिय सपत्तिया । चिंतिउ णियय चित्ति इहु रक्खमि मरणहो णिय य सत्तिया । । १ । । 2 तहि दिट्ठउ जलु पविमलु केहउ अंगुवि लग्गु रेणु मलु दिट्ठउ कुमरु' जाम णिय इच्छइ' कीलइ इक्कहि जलयरेण पावास ए मिल्लावियउ ण मिल्लइ केवहि तहि कुमारुणियमणि गंजोलिउ कम्म विवाउ लोयबलवंतउ कम्में दहमुह लक्खणि घायउ कम् भहराउ जिणवरसुउ सो समरंगणि भुववलि जित्तउ कम्में राउ जसोहर णडियउ अणु विसयललोय किय कम्महो पढम तुरंगि भमाडिउ काणणि पुणु कूवंध पडिवि णीसरियउ पुण्णु इत्थायउ हरि पंचत्तए घत्ता- बारहं अणुविक्खइं मणि धरिवि जुय मण-वयण-काय तियसुद्ध विहि दुवई - अवलोयवि वरंगु सरअंतरि इक्कहि इउ चिंतिवि धम्म पयावएहि चरणुल्लउ जलयरि मुक्कु जाम उवसग्ग णिवारिउ देवि हि । सरतीरि परायउ कुमरु ताम । 1. K, चिहि A, चिहिय 2. K, कुमारु 3. A, K, इंछइ 4. K, चुंटइ 5. K, कम्मे 6. A,N, णडियऊ 7. K, मोंहें 8. A 8. K, अंण्ण 9. A, धम्महम्महो 10. K, इछायउ
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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