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________________ 102 वरंगचरिउ एवहि लंजिय दोसायण्णहि वय णिण्णासु वसणु मणि मण्णहि। पिसियसुरायलु कुच्छिउ भक्खहि मिच्छावयणु णिच्चु परिअक्खहि। धणवंतउ कुरूउ पइसारहि णिद्धणु रुववंतु णिद्धाडहि। इक्कु रमहि अण्णेक्कुविचिंतहि कोदु होइ लंजियहि रमंतहि। वेसा अंगरुव किं कहियउ पावपुंज्जु विहिणा णिम्मइयउ। सव्ववल्लहं' जो कय रमणउ सो णिच्छइ कुजोणि कय गमणउ। घत्ता- लंजिय सेवंतउ, सुहु मण्णंतउ, खद्धई कोडि सुवणइं। वसुदह परिमाणउ, कय अवमाणउ, पुणु पाविय अवयण्णइं।।१२।। 13 वणिसुउ णामेण जि चारुदत्तु विट्ठइ गिह घल्लिउ दुक्ख पत्तु। इय मुणिवि पाउ लंजिय सहाउ वय-कारणि किज्जइ रमणचाउ। एवहि णिसुणहि णिव पावरिद्धि वसणु वि विद्धंसइ सयलसिद्धि । काणणि णिवसहि वहुजीव सत्थ तिरियम्मु लद्ध एही अवत्थ। पंगु रणहीण जिद्दोसयारि तिण्हइ वेलइ णउ लहहि वारि। जो तहं संहारइ पावयम्मु तहि सरिसउ अवरु ण को अहम्मु । पारद्धिउ चउगइ भमइ केम चलपहरिय झिंदु व पुहइ जेम। सव्वह वल्लहु णियजीवयव्यु सो णउ घाइज्जइ करिवि गव्वु । पारद्धिउ कुच्छिय जोणि जाइ परजीवह जीविउ मूढ घाइ। थरहरइ जीउ मरणहो भएण सो किं ताडिज्जइ असिवरेण। जहि परपाणिय-पाणहरु किण्णु तहि णियजीविय सुहवारि दिण्णु। इय जाणिवि किज्जइ जीवरक्ख मण-वयण-काय वसि करिवि अक्ख। चक्कवइ सुभोमु पयंडवाहु पारद्ध होउ वरि णिवद्ध गाहु। सो धम्मराय कवलियउ पाउ रवरव पत्तउ छंक्खंड राउ। एवहि तक्कर आयण्णिदोस जणु सयलु लहइ तक्करहो रोस। छिंदइ भिंदइ णरणाहु सीसु अहवा छिदइ पय पाणि ईसु। परधणु चोरंतह दय ण होइ तक्करु हणंत रक्खइ ण कोइ। जो पावयम्मु परदद् हरइ सो भवकाणणि भुल्लउ सरइ। जहि परलच्छी अवहरणु कि । तहि परजीविउ सयमेव लिद्ध। इह' परभव जीवह दुह णिबंधु कुसुमालकम्मु खलु भयह सिंधु। सिवभूइ विप्पु लोहेण णडिउ रयणइ णउ कप्पिय कुगइ पडिउ । इय मण्णिवि किज्जइ तासु चाउ चाएण पयट्ठइ सहलकाउ। 1.A, K,N, सव्वहवल्लहं (समास किया है) 13. 1 N, इहं 2. K, सिधु 12.
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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